Uncategorized Archives - Thydoc Health https://thydoc.com/category/uncategorized/ Thydoc Health Fri, 15 Mar 2024 10:31:03 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://thydoc.com/wp-content/uploads/2024/01/cropped-Thydoc-Favicon-32x32.png Uncategorized Archives - Thydoc Health https://thydoc.com/category/uncategorized/ 32 32 Ventilator क्या है और ये कैसे काम करता हैं? | Ventilator की जरूरत कब पड़ती है? | Ventilator in Hindi https://thydoc.com/what-is-a-ventilator-and-how-does-it-work/ https://thydoc.com/what-is-a-ventilator-and-how-does-it-work/#respond Fri, 15 Mar 2024 10:22:12 +0000 https://thydoc.com/?p=1613 The post Ventilator क्या है और ये कैसे काम करता हैं? | Ventilator की जरूरत कब पड़ती है? | Ventilator in Hindi appeared first on Thydoc Health.

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Ventilator!! दोस्तों, ये नाम सुनते ही आप क्या सोचते है? साँस की मशीन? life सपोर्ट? oxygen? icu? जी हाँ दोस्तों, ventilator एक लाइफ support system है जो अक्सर icu में इस्तेमाल होता है जब मरीज़ को मशीन से साँस देने कि ज़रूरत पड़ती है या फिर और भी किसी कारण से मरीज़ को ventilator पर लेना पड़ता है .क्या वेंटीलेटर सिर्फ़ icu में ही इस्तेमाल होता है? क्या वेंटीलेटर घर पे भी इस्तेमाल किया जा सकता है? किस तरह के patients को ventilator की ज़रूरत पड़ती है और ventilator को हटाया कैसे जाता है, ऐसी ही कई बातें और कुछ भ्रांतियों के बारे में हम आज इस वीडियो में बात करेंगे. नमस्कार दोस्तों , मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

दोस्तों, सबसे पहले जानते है की वेंटीलेटर क्या होता है? वेंटीलेटर को साँस की मशीन कहना ग़लत नहीं होगा. क्योंकि ये एक ऐसी microprocessor द्वारा चलने वाली मशीन है जिसका काम है गैस के मिक्सचर को हमारे फेफड़ों में में डालना और ख़राब गैस जिसे co2 कहते हैं उसे निकालना या यूँ कहे की ventialtor एक artificial lung की तरह काम करता है, यह वेंटीलेटर ऑक्सीजन सप्लाई से connected होता है जिससे ये गैस मिक्सचर बनता है जिस में एक गैस oxygen होती है और दूसरी गैस normal air ya हवा होती है और इससे oxygen का प्रतिशत फेफड़ों में कितना देना है ये decide किया जा सकता है. वेंटीलेटर से ये गैस मिक्सचर फेफड़ों में पहुँचाने के लिए मरीज़ को या तो मास्क से जोड़ना पड़ता है जहां इसे non invasive ventilation या niv कहते है या फिर मरीज़ को intubate करना पड़ता है यानी की साँस कि नली मरीज़ के मुँह से होती हुई श्वास नली में डालनी पड़ती है जहां इसे medical भाषा में invasive mechanical ventilation कहा जाता है, इस नली को endotracheal tube कहते हैं इस ट्यूब के माध्यम से वेंटीलेटर की tubing और फेफड़ों के बीच में connection बनता है और वेंटीलेटर के गैस के flow से फेफड़े फूलते हैं.

दोस्तों, जिन लोगो को लंबे समय तक वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है ऐसे मरीज़ों में साँस की ट्यूब हटा के मरीज़ के गले में स्वास नली या trachea में एक छेद कर दिया जाता है जो फेफड़ों और वेंटीलेटर के बीच एक कनेक्शन का काम करता है जिसे tracheostomy कहते हैं. अब जानते हैं कि वे कौनसे मरीज़ होते हैं जिन्हें वेंटीलेटर कि ज़रूरत पड़ती है. दोस्तों, हमारे शरीर के हर ज़रूरी फंक्शन की तरह हमारी स्वास का कंट्रोल हमारे दिमाग़ से होता है तो वे मरीज़ जिन्हें सर या दिमाग़ में कोई बीमारी है या चोट लगी है जिससे वे ठीक से साँस नहीं ले पा रहे है या अपनी निगलने की क्षमता खो चुके है जिससे पेट का खाना खाने की नली से मुँह में आ सकता है और वही ख़ाना साँस की नली में जा सकता है, या ऐसे मरीज़ जिनका श्वसन तंत्र किसी ज़हर की वजह से प्रभावित हुआ है , ऐसे मरीज़ों को वेंटीलेटर पे लेना बहुत ज़रूरी हो जाता है. इसके अलावा तो आप जानते ही है की अगर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है और ख़राब गैस यानी carbon di oxide बढ़ रही है तो ऐसे मरीज़ों को वेंटीलेटर पे ले कर साँस देनी पड़ती है जिससे शरीर से co2 को निकाला जा सके और ऑक्सीजन कि पूर्ति कि जा सके. ऐसा अक्सर तब होता है जब फेफड़ों में कोई बीमारी या इन्फेक्शन हुआ हो जैसे की निमोनिया जो की बैक्टीरिया, वायरस या फंगस किसी से भी हो सकता है, इसके अलावा ards या acute respiratory distress syndrome नामकी बीमारी में भी वेंटीलेटर की आवश्यकता होती है जहां इन्फेक्शन की वजह से फेफड़ों में पानी भरने लगता है. इसके अलावा जिन लोगों को copd या दमे की शिकायत है इन लोगों में भी कई बार ventilator की ज़रूरत पड़ती है. इसके अलावा ऑपरेशन के दौरान general anesthesia या पूरी बेहोशी में होने वाले ऑपरेशन में भी मरीज़ को वेंटीलेटर पे लिया जाता है.

तो दोस्तों, वेंटीलेटर icu में तो होता ही है पर hospital के कई और areas में भी इसका इस्तेमाल होता है जैसे की high dependant units जिन्हें short में hdu कहते हैं और operation theatre में भी वेंटीलेटर का उपयोग होता है. यहाँ तक कि घर पे भी वेंटीलेटर का इस्तेमाल अब संभव है. दोस्तों, वेंटीलेटर कैसे काम करेगा, कितना काम करेगा और मरीज़ की साँस को कितना कंट्रोल करेगा ये वेंटीलेटर की settings पर निर्भर करता है जो expert डॉक्टर सेट करते हैं. इस setting में ये सेट किया जाता है, मरीज़ को कितनी परसेंट ऑक्सीजन जायेगी, कितना फ्लो जाएगा, फेफड़ों को फुलाने के लिए कितना volume चाहिए, मरीज़ एक मिनट में कितनी बार साँस लेगा और इसके अलावा peep जो एक ऐसा प्रेशर है जो बीमार फेफड़ों को पूरी तरह पिचकने से बचाता है. मरीज़ की हालत में सुधार उसकी क्लिनिकल कंडीशन और vitals मतलब मरीज़ का blood pressure, उसके खून में oxygen की मात्रा , मरीज़ की heart rate के अनुसार देखा जाता है. इसके अलावा मरीज़ के arterial blood से abg की जाँच की जाती है जिससे मरीज़ के ब्लड में oxygen, carbon di oxide, acid, आदि चेक किए जाते है जिसके अनुसार वेंटीलेटर की सेटिंग में समय समय पर बदलाव किए जाते हैं. रोज़ छाती का एक्स रे करा कर भी मरीज़ के फेफड़ों की स्तिथि में सुधार आंका जाता है. जब मरीज़ वेंटीलेटर पे होता है तो फ़िज़ियोथेरपिस्ट द्वारा रोज़ दिन में एक से दो बार मरीज़ को फ़िज़ियोथेरेपी भी दी जाती है जिससे मरीज़ के फेफड़ों में बलगम एक जगह जमा ना हो और फेफड़ों की exercise भी हो. जैसे जैसे मरीज़ की स्तिथि में सुधार होता है वेंटीलेटर सपोर्ट कम किया जाता है जिस में मुख्यतया oxygen और peep होते है. जब ये दोनों parameter minimum लेवल पर आ जाते है और साथ ही साथ मरीज़ की अवस्था में भी सुधार होता है और जिस कारण से मरीज़ को वेंटीलेटर पे लिया गया था उस बीमारी में भी सुधार हो जाता है तो मरीज़ को weaning trial दिया जाता है जिसका मतलब है ये देखा जाता है कि बिना वेंटीलेटर के मरीज़ ख़ुद से कितनी साँस ले पा रहा है और जो साँस ले रहा है क्या वह पर्याप्त है और साँस लेने में मरीज़ को परेशानी तो नहीं हो रही है या मरीज़ को ज़्यादा ज़ोर लगा के तो साँस नहीं लेनी पड़ रही है या मरीज़ का साँस तो नहीं फूल रहा है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए धीरे धीरे स्टेप by step ventilator support कम करते हुए वेंटीलेटर हटा दिया जाता है.

दोस्तों, ventialtor से जुड़ा एक भ्रम है की अक्सर आपने देखा होगा की जो मरीज़ वेंटीलेटर पे होते हैं वे हमेशा सोते रहते हैं और कुछ relatives को तो ये तक लगता है की उनका मरीज़ मर चुका है. जब किसी भी मरीज़ को वेंटीलेटर पे रखा जाता है तो मरीज़ को बेहोशी और दर्द की दवा दे कर सुला दिया जाता है और ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि गले में डालने वाली साँस कि नली से मरीज़ को दर्द हो सकता है और मरीज़ uncomfortable हो सकता है, इसलिए इन दवाओं से मरीज़ को आराम दिया जाता है. इसके अलावा अगर मरीज़ होश में रहेगा और वेंटीलेटर से साँस जाएगी और अगर मरीज़ ख़ुद से भी साँस लेने की कोशिश करेगा तो वेंटीलेटर की साँस को वह resist करेगा जिससे वेंटीलेटर अपना काम ठीक से नहीं कर पाएगा इसलिए भी मरीज़ को इन दवाओं से सुला दिया जाता है जिससे वेंटीलेटर अच्छी तरह साँस दे पाये. पर दोस्तों, दिन में एक बार रोज़ मरीज़ की ये दवाएँ बंद कि जाती है मरीज़ को जगाया जाता है और मरीज़ का response देखा जाता है और तभी रिश्तेदारों को भी दिखाया जाता है.

दोस्तों, वेंटीलेटर के साथ भी कुछ complications हो सकते है जिन में सबसे पहले आते है साँस कि नली डालते समय मुँह और दांतों में चोट, ventilator के कारण होने वाला pneumonia, ventilator को अगर सही तरह से operate नहीं किया जाये तो फेफड़ों में injury भी हो सकती है. दोस्तों, लोग मानते हैं की वेंटीलेटर का मतलब है अंत. नहीं दोस्तों, वेंटीलेटर एक ऐसा life support है जो मरीज़ को तब तक सपोर्ट करता है जब तक मरीज़ अपनी बीमारी से मुक्त नहीं हो पाता है. जैसे ही मरीज़ ठीक हो जाता है और ख़ुद से साँस लेने में सक्षम हो जाता है तो वेंटीलेटर को धीरे धीरे हटा दिया जाता है. यहाँ तक कि मरीज़ को tracheostomy के साथ भी घर bheja ja sakta है. कुछ लोग सोचते हैं की वेंटीलेटर ऑक्सीजन supply करता है. नहीं दोस्तों, ऑक्सीजन सप्लाई को वेंटीलेटर से जोड़ा जाता है तब वेंटीलेटर ऑक्सीजन के मिक्सचर को फेफड़ों में भेजता है. अगली भ्रांति ये है की वेंटीलेटर सिर्फ़ हॉस्पिटल में ही इस्तेमाल हो सकता है. जिन लोगों को लंबे समय तक वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है और उनकी बाक़ी clinical condition अच्छी है ऐसे लोगों के लिए घर पे भी ventilator की व्यवस्था की जा सकती है. अगली भ्रांति ये है की आप वेंटीलेटर पे हैं तो आप ना बोल सकते हैं और ना ही कुछ खा या पी सकते है.

दोस्तों, अगर मरीज़ को स्वास नली डली है तो ऐसे मरीज़ बोल नहीं पायेंगे और खा पी भी नहीं पायेंगे पर अगर मरीज़ को ventilator से जुड़े हुए mask से साँस दी जा रही है तो ऐसे मरीज़ बोल भी सकते हैं और ख़ाना पीना भी कर सकते है. अगली भ्रांति जिसका हम निदान करना चाहेंगे वह यह है की हॉस्पिटल में मृत व्यक्ति को भी वेंटीलेटर पे रखा जाता है. ये बिलकुल ग़लत है दोस्तों. जहां वेंटीलेटर एक life support measure है पर ये भी तभी तक काम करता है जब तक दिल की धड़कन चल रही है पर जैसे ही मरीज़ की दिल की धड़कन रुक जाती है तो मरीज़ के शरीर में मृत्यु के बाद के बदलाव आने लगते है जैसे की शरीर में ऐंठन या rigor mortis आदि आना जिसे छुपाना नामुमकिन है इसलिए ये कहना सरासर ग़लत है कि सिर्फ़ हॉस्पिटल का बिल बढ़ाने के लिए मृत्यु के बाद भी वेंटीलेटर से साँस दी गई है.

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Iron Deficiency Anaemia क्या होता है और जाने Anaemia का घरेलू इलाज | Iron Rich Foods For Anaemia https://thydoc.com/iron-deficiency-anaemia/ https://thydoc.com/iron-deficiency-anaemia/#respond Fri, 15 Mar 2024 10:08:04 +0000 https://thydoc.com/?p=1590 The post Iron Deficiency Anaemia क्या होता है और जाने Anaemia का घरेलू इलाज | Iron Rich Foods For Anaemia appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, क्या आप हमेशा थकान महसूस करते हैं? क्या आपको चक्कर आते है? क्या आपको भूख कम लगती है? आपको अचानक अपने दिल की धड़कन महसूस होने लगती है और घबराहट होने लगती है? और chalk, मुलतानी मिट्टी जैसी चीज़ें खाने का मन करता है? तो दोस्तों आपको अनीमिया हो सकता है. और इस बीमारी का निदान कैसे हो, कैसे अपनी डाइट में बदलाव कर के भी आप अनीमिया को ठीक कर सकते है और उससे बचाव भी कर सकते हैं. इस बारे में हम आज इस वीडियो में बात करेंगे इसलिए अंत तक हमारे साथ जुड़े रहे. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर ऋषभ शर्मा, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन आसान शब्दों में देने के लिए प्रतिबद्ध है और  आगे भी ऐसी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे  चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें. अनीमिया या खून की कमी जैसी समस्या, भारत जैसे देश में काफ़ी   कॉमन है क्योंकि हमारी डाइट में आयरन की कमी है और इसी कारण iron डेफिशियेंसी सबसे कॉमन प्रकार का अनीमिया है जो हमारे देश में मिलता है. थकान होना, चक्कर आना, घबराहट होना, चलते समय साँस फूलना अनीमिया के कई सारे लक्षणों में से कुछ लक्षण है. अनीमिया का प्रभाव सर से पैर तक पूरे शरीर में सभी अंगों में देखा जा सकता है. आपको डिप्रेशन हो सकता है. आपके दिल की धड़कन तेज हो सकती है जिससे आपको घबराहट हो सकती है, आपको भूख कम लगने लगती है. आपकी त्वचा pale हो जाती है, आँखें कमजोर होने लगती है, साँस फूलने लगती है. आइए दोस्तों, अब बात करते हैं अनीमिया के इलाज की.

अनीमिया का इलाज इस बात पर निर्भर करता है की हीमोग्लोबिन कितना है और अनीमिया को हीमोग्लोबिन की मात्रा के अनुसार तीन प्रकार में बाटा गया है. mild moderate और severe. इसमें severe अनीमिया का इलाज हॉस्पिटल में भर्ती कर के ही किया जाता है क्योंकि ऐसे केसेज में मरीज़ की हालत गंभीर होती है. severe अनिमिया में मरीज़ को blood ट्रांसफ्यूजन की ज़रूरत पड़ती है. moderate अनीमिया में अगर मरीज़ को गंभीर लक्षण  नहीं है तो मरीज़ को आयरन के इंजेक्शन लगवाये जाते हैं और बाद में घर पर खाने के लिए iron supplements prescribe किए जाते हैं. mild anemia में iron supplements के साथ या सिर्फ़ अपनी डाइट में कुछ बदलाव ला कर आप इस तरह के अनीमिया को ठीक कर सकते हैं. पहला और सबसे ज़रूरी- अपने बर्तन बदलें. अगर आपको अनीमिया है तो आपको खाना पकाने के लिए लोहे की कढ़ाई का इस्तेमाल करना चाहिए. आजकल लोग non stick cookware इस्तेमाल करते है पर लोहे की कढ़ाई में खाना बनाने से खाने में आयरन की मात्र बढ़ जाती है और खाना ज़्यादा पोषक हो जाता है. दूसरा ज़रूरी टिप दोस्तों! खाने के तुरंत बाद चाय या कॉफ़ी  पीने की आदत छोड़ें. चाय और कॉफ़ी में  tannins और oxalates होते हैं,

जो खाने के आयरन को शरीर में absorb होने से रोकते है. इसलिए खाने के तुरंत बाद चाय या कॉफ़ी ना पिए. कुछ समय बाद आप बेशक पी सकते हैं. अपने ख़ान पान में खट्टे फल जैसे नींबू, संतरा, मौसमी जैसी खट्टी खाने की चीज़ें बढ़ाये. इन सभी खट्टे फ़ूड आइटम्स में विटामिन सी होता है जो शरीर में iron के अब्सॉर्प्शन को बढ़ाता है. इसलिए सलाद में नींबू डाले, स्नैक के तौर पर संतरा जैसा फल खाये. दोस्तों, गुड़ वह भी देसी गुड अनीमिया के लिये बहुत अच्छा होता है. गुड सबसे किफ़ायती और सबसे बेस्ट तरीक़ा है खून बढ़ाने का उन लोगों के लिए जो शाकाहारी है और मास मच्छी नहीं खाते हैं. गुड़ और चना आप हमेशा अपने साथ रख सकते हैं और आप बाहर है या ऑफिस में है और कभी भी आपको भूख लगे या कुछ मीठा खाने की craving हो तो आप गुड़ और चना खायें. ये सबसे पोषक स्नैक है. गुड़ को आप चीनी की जगह चाय या कॉफ़ी में इस्तेमाल कर सकते है. बाज़ार में jaggery पाउडर भी अब उपलब्ध है. इसके अलावा आप अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ जैसे की पालक को भी शामिल करे पर ध्यान रखने वाली बात ये है

की पालक में oxalates भी होते हैं जो पालक से iron के absorption को रोकते हैं. इसलिए पालक से आयरन के अब्सॉर्प्शन को बढ़ाने के  लिए खट्टे फल साथ में ले या नींबू add करे  जिस में विटामिन सी होता है. beans में भी आयरन काफ़ी मात्रा में होता है जैसे कि राजमा, छोले, सोयाबीन, लोबिया, मटर. दोस्तों, काजू ,पिस्ता, ख़रबूज़े के बीज, pumpkin seeds और सूरजमुखी के बीजों में भी आयरन होता है इसलिए अगर इन नट्स और seeds को अगर आप अपनी डाइट में शामिल करेंगे तो आप आयरन की कमी को पूरा कर सकते हैं. इसके अलावा बाज़ार में iron fortified फ़ूड items भी उपलब्ध है इसलिए जब भी आप सुपरमार्केट जाये तो पैकेट पर लेबल ज़रूर पढ़े. अब बात करते हैं कुछ non veg फ़ूड आइटम्स की जो आयरन रिच होते हैं. मीट और chicken दोनों में ही आयरन होता है इसलिए जो लोग non veg खाते है वे लोग इन्हें अपनी डाइट में ज़रूर शामिल करे. इसके अलावा लिवर में भी काफ़ी आयरन होता है. लिवर में मीट और चिकेन की तुलना में आयरन काफ़ी ज्यादा होता है. कई लोग organ मीट खाना पसंद नहीं करते हैं पर लिवर में  folate भी काफ़ी मात्रा में होता है. फ़ोलेट की कमी से भी अनीमिया हो सकता है इसलिए लिवर आयरन और फ़ोलेट दोनों की कमी से होने वाले अनीमिया से बचाव करता है और कमी कि पूर्ति भी करता है. मछली और दूसरे sea फूड्स भी आयरन के अच्छे स्रोत हैं.

इनमें मुख्य है oyster, clams, crab, shrimps और मछली में रोहू, कतला, मागुर, पाम्फ्रेट, salmon, tuna. तो दोस्तों, अनीमिया से आपके रोज़मर्रा के जीवन में बाधा आ सकती है पर अगर समय से अगर इसका पता चल जाये और एक्शन लिया जाये तो इस समस्या को गंभीर होने से रोका जा सकता है. अगर अपनी डाइट और लाइफस्टाइल में बदलाव के बाद भी अगर आप अनीमिया के लक्षणों से परेशान हैं तो आपको डॉक्टर से चेक अप ज़रूर कराना  चाहिए क्योंकि हो सकता है आपको दूसरे प्रकार का अनीमिया हो या किसी और बीमारी की वजह से आपको अनीमिया हो.

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हड्डियां मजबूत करने के उपाय | HADDIYON KE DARD KA ILAJ | Osteoporosis Treatment Hindi https://thydoc.com/osteoporosis-treatment-hindi/ https://thydoc.com/osteoporosis-treatment-hindi/#respond Fri, 15 Mar 2024 09:53:03 +0000 https://thydoc.com/?p=1596 The post हड्डियां मजबूत करने के उपाय | HADDIYON KE DARD KA ILAJ | Osteoporosis Treatment Hindi appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, अक्सर आपने आसपास या घर पे आपने देखा होगा की कैसे बुजुर्गों को हल्की से चोट पे फ्रैक्चर हो जाता है. ऐसा इसलिए होता है , क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ उनकी हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं. आख़िर उनकी हड्डियों क्यों कमजोर होती है? और किन लोगो की हड्डियाँ कमजोर हो सकती है? और आप किन बातों का ध्यान रख के अपनी हड्डियों को मज़बूत रख सकते हैं? ऐसे ही सारे सवालों का जवाब आपको हम आज इस वीडियो में देंगे इसलिए हमारे साथ इस वीडियो के अंत तक जुड़े रहिए. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारा चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में शेयर करें.

दोस्तों, भगवान ने हमारे शरीर में हड्डियों को इतना मज़बूत बनाया है की वे किसी भी तरह का वजन और चोट झेल सकती है पर जब हड्डियाँ इतनी कमजोर हो जाती है जहां मामूली सी चोट लगने पर भी फ्रैक्चर हो जाता है, ऐसी कंडीशन को मेडिकल भाषा में osteoporosis कहते है. ऐसी कंडीशन में bone मिनरल density या घनत्व कम हो जाता है या यूँ कहे हड्डियाँ खोकली हो जाती है. उम्र के साथ हड्डियाँ अपना घनत्व खोने लगती हैं पर साथ ही साथ नयी ग्रोथ भी हड्डियों में होती है जिसे remodeling कहते हैं. इस प्रक्रिया में जब असंतुलन हो जाता है तब हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं. ज़्यादातर लोगों को तो ये पता भी नहीं चलता है की उनकी हड्डियाँ कमजोर है और ये तब पता चलता है जब उन्हें कोई फ्रैक्चर हो जाता है इसलिए इस बीमारी को silent killer भी कहते हैं.

osteoporosis किसी भी हड्डी को कमजोर कर सकता है पर सबसे ज़्यादा केस में जिन हड्डियों में osteoporosis की वजह से फ्रैक्चर common है वे हड्डियाँ हैं- कूल्हे की हड्डी, कलाई की हड्डियाँ और रीढ़ की हड्डी. osteoporosis में हड्डियों के कमजोर होने के साथ साथ कुछ और भी लक्षण देखने को मिल सकते हैं. वैसे तो फ्रैक्चर होना ही इसका सबसे कॉमन लक्षण है पर इसके अलावा भी आप कुछ लक्षण नोटिस कर सकते हैं जैसे की आपको थकान रहने लगती है और शरीर में जगह जगह दर्द हो सकता है, आपकी हाइट कुछ इंच कम हो जाती है, आपका नेचुरल posture बदल जाता है और आप आगे की और झुक जाते हैं या कूबड़ निकल आता है, अगर रीढ़ की हड्डी पर असर हुआ है और रीढ़ की हड्डी कमजोर हुई है तो आपको कमर दर्द के साथ साँस लेने में भी तकलीफ़ हो सकती है. अब बात करते हैं की osteoporosis होता क्यों है? हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं की तरह हड्डियों में भी सेल्स का turnover चलता रहता है यानी पुरानी सेल्स मरती है नयी सेल्स बनती है. तीस साल की उम्र तक सेल्स नष्ट होने से ज़्यादा बनती है पर 35 साल के बाद सेल्स इतना जल्दी जल्दी नष्ट होने लगती है कि नयी सेल्स उन्हें पूरी तरह से replace नहीं कर पाती है. इसके कारणों के अनुसार osteoporosis को दो तरह का बताया गया है- primary और secondary. primary osteoporosis उम्र के बढ़ने की वजह से या मीनोपॉज की वजह से होता है और secondary शरीर में होने वाली किसी और बीमारी की वजह से होता है जैसे की liver disease, kidney की बीमारी, thyroid या डायबिटीज.

अब बात करते हैं की osteoporosis या हड्डियों के कमजोर होने का ख़तरा किन लोगों को ज़्यादा है? इनमें सबसे पहले आते है हमारे बुजुर्ग जो पचास साल से ऊपर है, दूसरे नंबर पे वे महिलायें आती है जो menopause में चली गई है यानी जिनके periods बंद हो गये हैं , तीसरे वे लोग जिनके परिवार में हड्डियाँ कमजोर होने की बीमारी है, अगले है वे लोग जो काफ़ी दुबले होते है, इसके अलावा वे लोग जो स्मोकिंग करते हैं, शराब का सेवन ज़्यादा करते है और तंबाकू भी खाते हैं. इसके अलावा कुछ बीमारियों की वजह से भी हड्डियाँ कमजोर हो सकती है जैसे की थाइरोइड और parathyroid ग्रंथियों की बीमारी, डायबिटीज में, पेट की बीमारियों जिन में आते है celiac disease और inflammatory bowel disease, कुछ autoimmune बीमारियों जैसे की rheumatoid arthritis और ankylosing spondylitis, इसके अलावा multiple myeloma जैसे ब्लड कैंसर. कुछ दवाओं की वजह से भी osteoporosis हो सकता है जिन में आती है diuretics जो की शरीर से एक्स्ट्रा पानी निकालने के लिए दी जाती है. ये अक्सर high ब्लड प्रेशर के मरीज़ों में दी जाती है या उन्हें दी जाती है जिन्हें दिल की बीमारी है, या जो kidney failure के मरीज़ है, next है steroids, और मिर्गी की दौरे के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएँ, कैंसर के लिए दी जाने वाली हॉर्मोन थेरेपी, खून पतला करने वाली दवाएँ और acidity के लिए ली जाने वाली दवाएँ. इसके अलावा अगर आपने अपना वजन कम कराने की सर्जरी करायी है तो वह भी हड्डियों के कमजोर होने का कारण हो सकती है. इसके अलावा दोस्तों अगर आप डाइट में कैल्शियम और विटामिन डी कम लेते हैं और आप एक्सरसाइज भी regularly नहीं करते हैं तो भी आपको osteoporosis हो सकता है.

अब जानेंगे कि osteoporosis का डायग्नोसिस कैसे होता है, इसका पता कैसे चलता है? दोस्तों, एक्स रे में भी हड्डी के कमजोर होने का पता चल
सकता है पर इसके लिए best investigation है dexa scan जिससे bone mineral density का पता चलता है. अगर dexa जाँच में t score minus 2.5 से कम है तो आपको osteoporosis है और अगर ये स्कोर माइनस 3.5 से कम है तो आपको severe osteoporosis है और आपको फ्रैक्चर का ख़तरा बहुत ज़्यादा है. अगर आप पचास साल से ज़्यादा हैं या आप महिला है और आपको menopause हो गया है तो आपको समय समय पर ये जाँच कराते रहना चाहिए. दोस्तों, अब बात करेंगे इसके इलाज की. osteoporosis में सबसे ज़रूरी है हड्डियों को फ्रैक्चर से बचाना इसके लिये आपको लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ कुछ ऐसी दवाएँ भी लेने की सलाह दी जाती है जो ना सिर्फ़ bone loss को कम करती है बल्कि जो बोन tissue है उसे मज़बूत भी करती है. लाइफस्टाइल changes में सबसे पहले आता है एक्सरसाइज- रेगुलर कसरत से हड्डियाँ तो मज़बूत होती ही है साथ ही साथ हड्डियों से जुड़े मांसपेशियाँ, tendon और ligament भी मज़बूत होते हैं. osteoporosis से बचाव के लिए कसरत में भी सबसे लाभदायक कसरत है वजन उठाने वाली कसरत जिससे आपका बैलेंस सही रहता है और मांसपेशियाँ भी मज़बूत होती है. वे कसरत जो ग्रेविटी के opposite काम करती है जैसे की walking, योगा, pilates भी आपके लिये काफ़ी फ़ायदेमंद होती है. ये exercises आपकी हड्डियों पे ज़्यादा ज़ोर भी नहीं डालती है. ideally आपको physiotherapist की राय ले कर अपने लिए एक एक्सरसाइज regime या रूटीन बनाना चाहिए. इसके अलावा आपको कैल्शियम और विटामिन डी supplements भी लेने चाहिए. इसके अलावा डॉक्टर आपकी bone डेंसिटी को देखते हुए osteoporosis के लिए बनी कुछ विशेष दवाएँ भी recommend कर सकते हैं जो आपकी नयी हड्डी के निर्माण में मदद करती है या फिर हड्डी को नष्ट होने से बचाती है. जो महिलायें menopause में है उन्हें hormone replacement therapy भी दी जाती है. osteoporosis से बचाव के लिए आप अपनी डाइट में कैल्शियम बढ़ाये. सप्ताह में कम से कम पाँच दिन आधा घंटा एक्सरसाइज करे और weights ज़रूर उठाये. दोस्तों, ऐसे लोग जिनकी हड्डियाँ कमजोर है उन्हें गिरने या चोट लगने से बचाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर हड्डियाँ कमजोर है तो मामूली सी चोट से भी फ्रैक्चर हो सकता है.

इसलिए कुछ बातों का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए जैसे की गाड़ी में बैठे तो हमेशा सीट बेल्ट लगाये, बाथरूम का फ़र्श गीला ना रहने दे, ऐसे क़ालीन या पायदान ना बिछाए जिस में पैर उलझ सकता है, एक्सरसाइज और walk करते समय एक्सरसाइज उपर्युक्त कपड़े और sport shoes पहने, घर पे कुर्सी या टेबल पर खड़े हो कर कोई काम ना करे. अगर आपको चलने में या बैलेंस बनाने में तकलीफ़ है तो छड़ी या walker का सहारा ले कर चले. इन सब बातों का ध्यान रखना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि अगर ऐसी हड्डियों में फ्रैक्चर हो जाए तो फिर उसका इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसी हड्डियों में ऑपरेशन से screw fix करना भी संभव नहीं हो पाता है.

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गले में दर्द, सूजन से परेशान? | जानिए Tonsil के कारण और इलाज | Tonsillitis Treatment and Causes https://thydoc.com/tonsillitis-treatment-and-causes/ https://thydoc.com/tonsillitis-treatment-and-causes/#respond Fri, 15 Mar 2024 09:47:20 +0000 https://thydoc.com/?p=1578 The post गले में दर्द, सूजन से परेशान? | जानिए Tonsil के कारण और इलाज | Tonsillitis Treatment and Causes appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, क्या आपके बच्चे का गला भी बार बार ख़राब होता है? और साथ ही साथ उसको कुछ भी निगलने में तकलीफ़ होती है जिसकी वजह से बच्चा खाना नहीं खा पाता है, और ये लक्षण बच्चे को बार बार होते हैं, तो हो सकता है उसे tonsillitis या टॉन्सिल का इन्फेक्शन हो रहा हो. आज के इस वीडियो में हम बच्चों की इसी परेशानी के बारे में बात करेंगे और जानेंगे की किन लक्षणों की मदद से आप जान पायेंगे कि आप के बच्चे को tonsil की बीमारी है ताकि उसका इलाज समय पर शुरू किया जा सके, हम ये भी जानेंगे कैसे बच्चों को टॉन्सिल की  इस परेशानी से बचाया जा सकता है, कौनसे घरेलू तरीक़ों से आप बच्चे को इस समस्या में आराम दे सकते हैं और ये दवाओं से tonsillitis की बीमारी ठीक नहीं होती है कौनसी advance techniques से इसकी surgery की जाती है. और हाँ ये भी बात करेंगे की समय पर इसका इलाज ना किया जाये तो बच्चे में क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं, इसलिए ये वीडियो आप अंत तक ज़रूर देखे. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर shubhangi गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करती हूँ.  ऐसी और health related जानकारी के लिए कृपया आप हमारे  चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में शेयर करें.

दोस्तों, सबसे पहले बात करते हैं की आख़िर ये टॉन्सिल होते क्या है? टॉन्सिल एक तरह के lymphatic अंग है जिनका काम होता है शरीर के इन्फेक्शन को रोकना. ये हमारे गले में दोनों तरफ़ स्तिथ होते हैं. इनकी सामान्य साइज जामुन जितनी बड़ी होती है. ये हमारे मुँह के चौकीदार की तरह रहते हैं और कीटाणु को  मुँह में  घुसने से रोकते है. दोस्तों! tonsillitis का मतलब है टॉन्सिल का infection या inflammation या यूँ कहे टॉन्सिल की सूजन हो जाने पर उसे मेडिकल भाषा में tonsillitis कहते है. जब किसी वायरस या बैक्टीरिया का इन्फेक्शन होता है तो हमारे tonsils उन्हें रोकने में जुट जाते है और इसी लड़ाई में तो tonsils inflamed हो जाते हैं, मतलब टॉन्सिल में सूजन आ जाती है जिससे टॉन्सिल size में बड़े हो जाते है. इसी को tonsillitis कहते हैं. इस वजह से ही मरीज़ को लक्षण आने लगते है. Tonsil के इस इन्फेक्शन का सबसे common कारण वायरस होते हैं और दूसरा common कारण bacteria है.

tonsillitis होने का ख़तरा बच्चों में और ख़ासकर 5-15 साल की उम्र में ज़्यादा होता है.  puberty या किशोरावस्था के बाद tonsil का immune function कम हो जाता है जिससे tonsillitis का रिस्क भी कम हो जाता है. स्कू ल जाने वाले वे बच्चे जो दूसरे बच्चों के संपर्क में ज़्यादा आते है एक दूसरे की जूठी बॉटल और दूसरी खाने की चीज़ें आपस में शेयर करते हैं उन्हें भी tonsillitis का रिस्क ज़्यादा होता है. Bado me bhi tosnil ka infection ho sakta hai jisme mareej ko 5 se 6 bar saal me tonsil ka infection bar bar hota hai Iअब जानते हैं कि tonsillitis के लक्षणों के बारे में. जब किसी बच्चे को tonsillitis होता है तो tonsil लाल और बड़े हो जाते हैं, ये गले में गाँठ जैसे भी महसूस हो सकते हैं और इन्हें गर्दन में बाहर से छूने पर दर्द होता है. गर्दन में बाहर से दबाने पर अगर दर्द होता है इसका  मतलब ये है की गले में दूसरी ग्रंथियों में भी सूजन आ गई है,

अगला लक्षण होता है खाना निगलने में कठिनाई जिसके कारण बच्चे खाना खाने से बचने लगते हैं. बच्चे का अगर आप मुँह खोल कर देखेंगे तो टॉन्सिल्स पर आपको सफ़ेद या पीली परत भी दिखायी दे सकती है, बच्चों को बुख़ार भी आ सकता है,आवाज़ भारी हो सकती है, मुँह से बदबू भी आ सकती है, गर्दन में जकड़न भी आ सकती है और दर्द भी हो सकता है, सर दर्द और पेट दर्द भी हो सकता है. छोटे बच्चे जो अपनी शिकायत नहीं बता सकते हैं उन में कुछ लक्षणों से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की tonsillitis हो गया है. ऐसे बच्चों को चूँकि निगलने में तकलीफ़ होती है और दर्द भी होता है इसलिए बच्चों में हमेशा लार टपकती रहती है, बच्चे कुछ भी खाना पसंद नहीं करते हैं, बच्चे fussy हो जाते है और उनका किसी भी खेल में मन नहीं लगता है. इसके अलावा अगर बच्चे को बुख़ार है और बच्चा काफ़ी सुस्त और कमजोर है तो आपको डॉक्टर से check up ज़रूर कराना चाहिए. पर अगर बच्चे को साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है, बहुत ज्यादा लार टपक रही है और कुछ भी निगला नहीं जा रहा है तो आपको बिना देरी किए नज़दीकी हॉस्पिटल जाना चाहिए. दोस्तों, ध्यान देने वाली बात ये है की tonsillitis में खांसी, जुकाम अक्सर नहीं होते हैं. दोस्तों! अगर टॉन्सिल की इस सूजन का सही समय पर इलाज ना किया जाये तो patient को  गंभीर परेशानियाँ हो सकती है? उन में सबसे पहले आता है obstructive sleep apnoea या osa या नींद में साँस का बीच बीच में रुकना,

अगर tonsil का इन्फेक्शन टॉन्सिल के आसपास के टिश्यू में फेल जाता है तो tonsillar cellulitis हो सकता है. अगर टॉन्सिल के इन्फेक्शन से टॉन्सिल के पीछे    pus इकट्ठा हो जाती है तो  peritonsillar abscess या quinsy भी हो सकता है. अगर  बैक्टीरिया की वजह से इन्फेक्शन हुआ है और इसके लिए समय पर डॉक्टर द्वारा बताये गये इलाज और antibiotics नहीं लिये गये है या antibiotics का कोर्स बीच में छोड़ दिया गया है तो बच्चे को दू सरी गंभीर बीमारियों हो सकती है जैसे की rheumatic fever जहां बच्चे के heart, joints, nervous system, kidney और और स्किन में बीमारियों हो सकती है जो जब बच्चा बड़ा होता है तब उसे बहुत परेशान करती है और जानलेवा भी हो सकती है. इसके साथ ही बच्चे को अगर निगलने में परेशानी होगी तो वह proper खाना नहीं खाएगा जिसके कारण उससे पूरा nutrition नहीं मिलेगा और बच्चे की growth नहीं होगी,बच्चा school से बहुत absent रहेगा जिसके कारण उसकी पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा. दोस्तों! अच्छी बात ये है की आज advanced antibiotics होने की वजह से  tonsillitis का इलाज antibiotics और aur pain killer दवाओं से ही हो sakta है और बहुत कम cases में operation की ज़रूरत पड़ती है,

जिन बच्चों में infection बार बार हो रहा है, tonsil का साइज बहुत बढ़ गया हो, साँस लेने में दिक़्क़त होने लगी हो, खाना निगलने में दिक़्क़त होने लगी हो इन्ही कुछ कारणों की वजह से ऑपरेशन करना पड़ता है, दोस्तों! जब भी आप ent specialist के पास जाते हैं बच्चे को लेकर इन लक्षणों के साथ तो वहाँ मुँह खोलकर ही पता चल जाता है की बच्चे को tonsillitis की परेशानी है. ध्यान रहे कि आपको doctors द्वारा बतायी गई antibiotics  और अन्य दवाएँ टाइम से बच्चे को देनी है. ये भी ध्यान रहे कि अक्सर बुख़ार आने पर हम aspirin या disprin की गोली दे देते है परंतु  tonsillitis के केस में इन दवाओं को बिलकुल नहीं लेना है. उसके अलावा भी आपको कुछ और महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना है जैसे की बच्चे को पर्याप्त मात्रा में fluids, तरल पदार्थ और गरम पानी दे, बच्चे को आराम कराये, school ना भेजे ताकि school के दूसरे बच्चे infection से बच सके, बड़ों में अगर ये समय हुई है तो वे गरम पानी और नमक के गरारे कई बार दिन में करे. हालाँकि अगर tonsil के infection की वजह viral है तो ये ख़ुद ठीक हो जाता है, इसके लिए आपको पानी खूब पीना है, pain killers लेनी है परंतु आपको doctor से परामर्श के बाद ही ये दवाये लेनी है. अब अगर इसके लिये की जाने वाले ऑपरेशन की बात करे तो इसके ऑपरेशन में मुँह के रास्ते से दोनों tonsils को निकाल दिया जाता है और बाहर से कोई भी incision या चीरा लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है.  इस ऑपरेशन को tonsillectomy कहते हैं. ये पूरी बेहोशी में  किया जाता है , ये बहुत successful operation है , इस ऑपरेशन के बाद पेशेंट को अगले दिन ही हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी जाती है और वह दो दिन बाद ही अपनी नार्मल लाइफ resume कर सकते हैं.

दोस्तों, में यहाँ आपको tips भी बताना चाहूँगी जिसकी मदद से आप अपने बच्चे को इस इन्फेक्शन से बचा सकते हैं. जैसा कि हमने कारणों में बात की ये इन्फेक्शन वायरस और बैक्टीरिया से होता है और एक दूसरे के संपर्क में आने से होता है इसलिए इससे बचाव का एक ही तरीक़ा है good hygiene. आप अपने बच्चे को सिखाये की वह toilet जाने के बाद और खाने से पहले साबुन और पानी से अच्छे से हाथ धोये. अपने बर्तन, बॉटल, खाने और पीने की चीज़ें दूसरों के साथ शेयर ना करे, अगर बच्चे को tonsillitis हुआ है तो उसका toothbrush बदल दे. इन सब बातों के साथ आपको ये भी ध्यान रखना है की आपके बच्चे से ये इन्फेक्शन दूसरों को ना हो इसके लिये जब आपके बच्चे को tonsillitis हो तो बच्चे को स्कूल ना भेजे और अपने डॉक्टर से जाने की कब बच्चे को स्कूल भेजना सही रहेगा, अपने बच्चे को सिखाये की खाँसते और छींकते समय tissue paper का इस्तेमाल करे या अपनी कोहनी में छींके. और ये tissue paper डस्टबीन में फ़ेक दे और खाँसने और छीकने के बाद भी अपने हाथ साबुन और पानी से अच्छे से धोये.

आप कुछ घरेलू तरीक़ों से टॉन्सिल के दर्द से बच्चे को राहत दिला सकते है जैसे बच्चे को समय समय पर गरम तरल पेय पिलाए. ज़्यादा दर्द होने पर lozenges भी दे सकते है , room में humidifiers use कर सकते है जो कि आसपास कि हवा में नमी बनाए रखते है जिससे गले की ख़राश में काफ़ी आराम आता है. तो देखा दोस्तों, टॉन्सिल का इन्फेक्शन नार्मल सर्दी जुकाम जैसा नहीं है और इसके इलाज में कोई भी कोताही नहीं बरतनी चाहिये. इसका इलाज समय पर और डॉक्टर द्वारा बताये गये समय तक पूरा लेना चाहिए. दोस्तों! उम्मीद है कि tonsilitis पर मेरे द्वारा दी गई ये जानकारी आपके लिये लाभप्रद होगी, इसके अलावा अगर आप जानना चाहते हैं कि कान बहने के क्या क्या कारण होते हैं और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है  तो right पर आ रहे link पर click करे और भारत के best doctors से contact करने के लिए ऊपर दिए गये phone number पर कॉल करे और मेडिकल से रिलेटेड authentic, reliable और useful information के लिए हमारा चैनल thydoc health subscribe करे और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में शेयर करें. 

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Blood in Stool | लेटरिंग मे खून क्यों आता है? | लैट्रिन में खून के कारण | Causes of Rectal Bleeding https://thydoc.com/causes-of-blood-in-stool/ https://thydoc.com/causes-of-blood-in-stool/#respond Fri, 15 Mar 2024 09:41:24 +0000 https://thydoc.com/?p=1497 The post Blood in Stool | लेटरिंग मे खून क्यों आता है? | लैट्रिन में खून के कारण | Causes of Rectal Bleeding appeared first on Thydoc Health.

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क्या आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप सुबह मोशन गये और आपने देखा कि पॉट में ब्लड है या आपकी लैट्रिन काले रंग की दिख रही है या जब आप धोने लगे तो आपके हाथों में आपने खून देखा या आप टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करते हैं और इस पर ब्लड आया . अगर ऐसा कुछ भी आपके साथ हुआ है या हो रहा है तो आज का ये वीडियो आपके लिये ही है जिस में हम बात करेंगे की किन कारणों से लैट्रिन में खून आ सकता है. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर ऋषभ शर्मा, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन आसान शब्दों में देने के लिए प्रतिबद्ध है और  आगे भी ऐसी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे  चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

दोस्तों, लैट्रिन में ब्लड कई तरह से आ सकता है. पहला लैट्रिन के साथ पॉट में खून दिखना. दूसरा काले रंग की लैट्रिन आना. और तीसरा पोंछते समय या धोते समय टॉयलेट पेपर पर या हाथ पर खून दिखना. जिस तरह इन्हें बाँटा गया है उसी तरह इसके कारण भी अलग अलग हो सकते है. अगर आपको लैट्रिन में खून आ रहा है तो इसका कारण आपके git या gastrointestinal system या पाचन तंत्र में कहीं भी हो सकता है. दोस्तों हम एक एक प्रकार की ब्लीडिंग और उसके कारणों की बात करते हैं. सबसे पहला लैट्रिन के साथ ताज़ा खून आना. इसका कारण piles या haemarrhoids या बवासीर हो सकता है. बवासीर सबसे कॉमन कारण है लैट्रिन में ब्लड आने का. बवासीर में rectum या लैट्रिन के रास्ते की veins फूल जाती है और कई बार इनसे ब्लीडिंग होने लगती है.  inflammatory bowel disease जैसे की crohns disease और ulcerative colitis की वजह से भी लैट्रिन में ताज़ा खून आ सकता है. इस बीमारी में पेट दर्द और  दस्त भी हो सकते हैं. अगला कारण है diverticulitis जहां बड़ी आँत के सबसे लास्ट पार्ट और साथ में  rectum से  ब्लीडिंग होने लगती है. अगला कारण हो सकता है infective colitis यानी इन्फेक्शन से आँतों में सूजन आना, जहां दस्त के साथ ब्लीडिंग होती है. कुछ stds या sexually transmitted infections होने से भी लैट्रिन में खून आ सकता है. stds में दूसरे लक्षण जैसे की प्राइवेट पार्ट्स पर अलसर और घाव भी हो सकते हैं. अगला कारण है दोस्तों colorectal polyps जहां बड़ी आँत में मशरुम की तरह ग्रोथ होने लगती है जिसे polyp कहते है और ऐसे बड़े polyp ब्लीड भी कर सकते हैं. अगला कारण है colorectal कैंसर या बड़ी आँत का कैंसर. कई बार ये polyps कैंसर में तब्दील हो जाते हैं और ब्लीडिंग होने लगती है. महिलाओं में rectal endometriosis नाम की बीमारी से भी  लैट्रिन में खून आना संभव है. 

दोस्तों अब बात करते हैं काले रंग की लैट्रिन के कारणों की. अगर लैट्रिन काले रंग की है इसका मतलब यह है की ब्लड पाचन तंत्र में बहुत ऊपर से आ रहा है यानी पेट से या उसके आस पास से. यह ब्लड एसिड के संपर्क में आता है और नीचे आते आते पाचन रस के संपर्क में भी आता है जिससे इसका रंग काला हो जाता है और लैट्रिन काले रंग की दिखती है. इसके अलावा जब ब्लीडिंग छोटी आँत के इनिशियल पार्ट में हो रही है तो वहाँ से भी काली लैट्रिन आ सकती है. यह अक्सर peptic अलसर से ब्लीडिंग होने की वजह से होता है. peptic अलसर पेट में या छोटी आँत के पहले भाग में होता है. यह severe gastritis या पेट की सूजन और  oesophagitis या भोजन नली की सूजन की वजह से भी हो सकता है. इसके अलावा gastric erosion में भी पेट में ब्लीडिंग हो सकती है जिससे काले रंग की लैट्रिन हो सकती है. पेट में लगी किसी चोट की वजह से या gastric perforation की वजह से भी काली लैट्रिन हो सकती है. भोजन नली और पेट की खून की नसों के फूलने की वजह से varices हो सकती है. ये varices भी bleed करती है जिससे काली लैट्रिन हो सकती है. अब बात करते हैं तीसरी प्रकार की ब्लीडिंग की जो अक्सर शौच के बाद टॉयलेट पेपर पर या धोते समय हाथ पर पता चलती है. इसका मुख्य कारण anal fissure है जिसका कारण कब्ज होता है. जब stool बहुत hard हो जाता है और आप मोशन के समय ज़ोर लगाते है तो मलद्वार या anus पर hard stool pass होने की वजह से चोट लगती है और fissure बन जाता है जिस में दर्द भी होता है. इस दर्द की वजह से आपका मलद्वार रिलैक्स नहीं हो पाता है और पेट साफ़ नहीं हो पाता है जिस वजह से स्टूल आँत में पड़ा पड़ा और  हार्ड हो जाता है. ये चक्र ऐसे ही चलता रहता है. तो दोस्तों, हमने जाना कि लैट्रिन में खून आने के क्या क्या कारण हो सकते हैं. आशा है इस वीडियो में दी गई जानकारी आपके लिये लाभप्रद साबित होगी.   

दोस्तों अगर आपको कमज़ोरी थकान या चक्कर रहतीं तो हो सकता ही ये खून की कमी की वजह से हो , और अगर आप ये जानना चाहते हैं कि खून की कमी के क्या करण हो सकते तो आप राइट में डाई वीडियो पर क्लिक करें और अगर आज का ये वीडियो आपको पसंद आया तो like ज़रूर करे और ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करे. आगे भी ऐसी जानकारी से अपडेटेड रहने के लिये हमारे चैनल thydoc हेल्थ को ज़रूर सब्सक्राइब करे. बाकी भारत के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर से कंसल्ट करने के लिए आप ऊपर दिए गए नंबर पर क्लिक करें|धन्यवाद

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घुटने बदलने की सर्जरी क्या होती है | कब, क्यूँ और किसे करवानी चाहिए | Knee Replacement Surgery https://thydoc.com/knee-replacement-surgery/ https://thydoc.com/knee-replacement-surgery/#respond Fri, 15 Mar 2024 09:31:47 +0000 https://thydoc.com/?p=1556 The post घुटने बदलने की सर्जरी क्या होती है | कब, क्यूँ और किसे करवानी चाहिए | Knee Replacement Surgery appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, आपने प्रसिद्ध गोल्फ खिलाड़ी tiger woods का नाम तो सुना ही होगा पर क्या आप ये जानते हैं कि उन्होंने घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी करायी हुई है. हुआ ना आश्चर्य? Kya is surgery ke bad bhi vyakti itna fit ho sakta hai, ji ha yahi janenge is vidoe me, अब आप पूछेंगे की घुटना प्रत्यारोपण या knee replacement क्या होता है और इसकी ज़रूरत क्यों पड़ती है, क्या यह इतनी succeessful surgery है ? यह surgery successful हो इसके लिए आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होता है, जो तैयारी आपको operation कराने से पहले करनी होती है, वे कौनसी तैयारियों है? इस सर्जरी के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी कब मिलती है और इस ऑपरेशन के बाद जीवन पर क्या असर पड़ता है? इन्ही सब सवालों के जवाब हम आज इस वीडियो में देंगे, इसलिए यह वीडियो अंत तक देखें. नमस्कार दोस्तों , मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और  आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे  चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

दोस्तों, knee replacement सर्जरी में घुटने के चोट ग्रसित और घिसे हुए हिस्सों को मेटल और प्लास्टिक के बने artificial parts या implants से  replace किया जाता है. आपके लिये knee replacement सही रहेगा या नहीं यह decision आपके सर्जन, आपके घुटने की mobility, stability और ताक़त को देखते हुए लेते हैं. घुटने के एक्स रे से पता चलता है कि घुटने में कितना नुक़सान हुआ है. आपके लिये सही artificial joint और surgical technique बहुत सी बातों पर निर्भर करती है जैसे की आपका वजन, आपका activity level, घुटने का आकार और साइज और आपकी overall हेल्थ. total knee replacement  सर्जरी कराने का मुख्य कारण होता है arthritis जहां मरीज़ के घुटने की दोनों हड्डियों के बीच की cartilage या गद्दी घिस जाती है जिससे दोनों हड्डियाँ के बीच का गैप कम हो जाता है और ये हड्डियाँ आपस में घर्षण करने लगती है और आपको चलने फिरने, सीढ़ियाँ  चढ़ने और कुर्सी से उठते समय तकलीफ़ होती है और घुटनों में दर्द होने लगता है. arthritis या osteoarthritis का मुख्य कारण है उम्र के साथ होने वाला wear and tear. पर हर osteoarthritis के मरीज़ को knee replacement की सलाह नहीं दी जाती है. यह कुछ बातों पर निर्भर करता है जैसे की एक्स रे में घुटने में कितना  डैमेज नज़र आ रहा है और उससे रोज़मर्रा की activities कितनी प्रभावित हो रही है. एक्स रे को देखकर osteoarthritis की grading की जाती है जिस में फर्स्ट और सेकंड ग्रेड में लाइफस्टाइल मॉडिफिकेशन, medical मैनेजमेंट और फ़िज़ियोथेरेपी की सलाह दी जाती है. थर्ड और फोर्थ ग्रेड में knee replacement karaane की सलाह दी जाती है. 

अगर घुटने के किसी एक भाग में क्षति है तो सिर्फ़ उस  भाग को ही बदला जाता है और ऐसे में इसे partial knee replacement कहा जाता है  पर अगर पूरा जॉइंट प्रभावित हुआ है तो पूरे जॉइंट को कृत्रिम जॉइंट से बदला जाता है जिसे  total knee replacement कहते हैं. हड्डियों का सेंटर सॉफ्ट होता है और यही पे कृत्रिम भागों को जोड़ा जाता है.इस सर्जरी की तैयारी के लिए आपको कुछ निर्देश दिये जाते है जैसे आपको ऑपरेशन से पहले के 6 घंटे कुछ खाना पीना नहीं है. अगर आप पहले से कुछ दवाएँ ले रहे है तो आपको कुछ दवाएँ थोड़े दिनों के लिये बंद करने के लिये कहा जा सकता है या इन दवाईओं का dose बदला जाता है जैसे की खून पतला करने वाली दवाएँ और अगर आपको सुगर की बीमारी है तो एक दिन पहले का सुगर की दवाई का dose आपको miss करने के लिए कहा जाता है क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर आपको ऑपरेशन से पहले या operation ke  दौरान इन्सुलिन पर लिया जा सकता है. डॉक्टर आपको ऑपरेशन से कुछ दिनों पहले से ही कुछ एक्सरसाइज रोज़ करने के लिए बोलेंगे, जो आपको करनी है जिन से मांसपेशियाँ मज़बूत होंगी और ऑपरेशन के बाद रिकवरी भी अच्छी होगी. Operation होने के बाद यह ऑपरेशन  successful हो इसके लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, और यह तैयारी आपको ऑपरेशन होने से पहले ही करनी होती है. आपको ऑपरेशन के बाद रिकवरी के दौरान चलने के लिए walker या crutches की ज़रूरत होती है जो आपको पहले ही arrange करने होते हैं. आपको ऑपरेशन के बाद कुछ दिनों तक सीढ़ियाँ चढ़ने की मनाही होती है इसलिए अगर घर पे आपका कमरा ऊपर है तो आपको कुछ दिनों के लिए ground floor पर ही अपना रहने का इंतज़ाम कर लेना चाहिए. बाथरूम में safety bar और hand rail लगवा ले. सीढ़ियों की रेलिंग भी चेक कर ले. एक stable कुर्सी  भी arrange कर ले जिस में पीठ की और बैठने वाली गद्दी हो और एक foot stool भी  जिससे आप पैर ऊपर रख सके. ऑपरेशन के बाद बैठने वाला टॉयलेट या western toilet ही इस्तेमाल करना है और अगर सीट नीचे है तो उसे ऊपर करवा ले, नहाने के लिए कुर्सी पर बैठ कर ही नहाना है, फ़र्श पर ऐसे क़ालीन या पायदान ना बिछाये जिन में  पैर फ़स सकता है, रात के समय पेशाब के लिए उठना होता है इसलिये बाथरूम तक अच्छी रोशनी की व्यवस्था भी कर ले.

दोस्तों, ये तो हुईं ऑपरेशन से पहले की तैयारी जो आपको ऑपरेशन से पहले करनी है. ऑपरेशन के लिए या तो आपको एक रात पहले एडमिट किया जा सकता है या फिर सुबह बुलाया जा सकता है. यह ऑपरेशन spinal या epidural anesthesia में होता है. इस तरह के एनेस्थीसिया में आपकी कमर में एक सुई लगायी जाती है जिससे एक दवाई दी जाति है जिससे आपके पेट के नीचे का हिस्सा सुन्न हो जाता है पर आप जगे हुए रहते हैं. ज़रूरत पड़ने पर आपको नींद का इंजेक्शन दिया जा सकता है. कई बार पूरा बेहोश करने की ज़रूरत भी पड़ सकती है. इस ऑपरेशन में एक से दो घंटे लगते हैं. ऑपरेशन के बाद आपको recovery एरिया में रखा जाता है. आपको हॉस्पिटल से अगले  तीन से चार दिन में छुट्टी मिल जाती है . यह आपके anesthesia, आपकी रिकवरी, आपकी mobility और आपके दर्द पर निर्भर करता है. आपको ऑपरेशन के बाद एनेस्थीसिया का असर ख़त्म होने के बाद जल्दी से जल्दी घूमने फिरने के लिए कहा जाता है  आपको operation के बाद physiotherapy की टीम की मदद से चलाया जाता है. आपको पैर में elastic stockings भी पहनने के लिए कहा जा सकता है. आपको फ़िज़ियोथेरेपी भी अगले ही दिन से शुरू कर दी जाती है और physiotherapist आपको  नये घुटने की एक्सरसाइज भी करवाते है और घर जाने के बाद भी लंबे समय तक  फ़िज़ियोथेरेपी की सलाह दी जाती है. इस ऑपरेशन के बाद मरीज़ को दर्द में, चलने फिरने में काफ़ी फ़ायदा होता है जिससे quality of life काफ़ी सुधरती है . 

यह implant 15-20 साल आराम से चलते हैं. ऑपरेशन के बाद शुरू में आपको लंबे समय तक एक जगह स्थिर खड़े रहने के लिए मना किया जाता है क्योंकि इससे घुटने में सूजन आ सकती है. तीन से 6 हफ़्ते बाद आप अपने रोज़मर्रा के सभी काम आसानी से कर सकते हैं. आठ से दस हफ़्ते बाद ड्राइविंग भी कर सकते हैं. रिकवरी के बाद आप low impact activities आराम से कर सकते हैं जैसे की चलना फिरना, तैरना, साइकिल चलाना और गोल्फ खेलना. पर आपको higher impact activities जैसे की jogging, contact sports जैसे की फुटबॉल, और jumping आपको मना किया जाता है . आपको अपने डॉक्टर द्वारा दिये गये सभी निर्देशों का पालन करना है. आपको डॉक्टर द्वारा दी गई दवाएँ बताये गये टाइम पर लेनी है और follow up के लिए जब बुलाया जाये तब जाना भी है. ऑपरेशन साईट के घाव भरने तक आपको उस साईट को गीला नहीं करना है . और अपनी डाइट भी iron और calcium rich लेनी है. हर सर्जरी की तरह इस सर्जरी के भी कुछ रिस्क हो सकते हैं जैसे की पाव में खून का थक्का जमना. अगर ये खून के थक्के फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं तो जानलेवा साबित हो सकते हैं parantu yah bahut hi rare cases me hota hai aur iske bachne ke liye aapko medicines di jati hai exercices bhi batayi jati hai,

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मलद्वार से खून की समस्या? | RECTAL BLEEDING | लैट्रिन में खून के लक्षण और जांच | BLOOD IN STOOL https://thydoc.com/rectal-bleeding-blood-in-stool/ https://thydoc.com/rectal-bleeding-blood-in-stool/#respond Fri, 15 Mar 2024 09:26:34 +0000 https://thydoc.com/?p=1545 The post मलद्वार से खून की समस्या? | RECTAL BLEEDING | लैट्रिन में खून के लक्षण और जांच | BLOOD IN STOOL appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, अगर आपको लैट्रिन में खून आ रहा है तो घबराहट तो होगी पर यह स्तिथि हमेशा ही गंभीर हो ऐसा नहीं है. यह स्तिथि कब गंभीर हो जाती है और किन लक्षणों से हमे पता चलता है कि गंभीरता बढ़ गई है और आपको अपने निकट तम हॉस्पिटल से तुरंत संपर्क करने की ज़रूरत है.आज के इस वीडियो में हम यही discuss करेंगे की अगर आपको लैट्रिन में खून आ रहा है तो आपको किन बातों का विशेष ध्यान रखने कि ज़रूरत है. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर ऋषभ शर्मा, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन आसान शब्दों में देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ऐसी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

दोस्तों, अगर आपको लैट्रिन में ताज़ा खून आ रहा है जो चमकदार लाल रंग का दिखायी देता है तो यह स्तिथि गंभीर हो सकती है. क्योंकि इसका मतलब ये है की कहीं से ताज़ा ब्लीडिंग हो रही है. अगर आपके stool या मल का रंग अचानक बदल गया है तो भी आपको डॉक्टर से चेक अप करवाना चाहिए. क्योंकि अगर स्टूल का कलर पहले नार्मल था पर अब काला हो गया है या उस में मिक्स ब्लड नज़र आ रहा है तो इसका मतलब पाचन तंत्र में कही ब्लीडिंग हो रही है. अगर आपको मोशन जाते समय दर्द हो रहा है या बैठने पर भी anus में दर्द है तो भी आपको डॉक्टर से राय लेनी चाहिए. इस दर्द का मतलब यह है की आपको एनल फ़िशर हो गया है. अगर आप मोशन पे कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं और टॉयलेट पहुँचने पहले से ही मोशन कपड़ों में ही निकल जाता है तो यह भी एक गंभीर स्तिथि है. आपका वजन अचानक काफ़ी कम हो गया है तो भी आपको तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए. अचानक वजन कम होना कैंसर का लक्षण हो सकता है. आपका blood प्रेशर काफ़ी कम हो गया है और आपको चक्कर आ रहे है और बेहोशी जैसा महसूस हो रहा है तो भी आपको अपने निकटतम अस्पताल में बिना देरी किए जाना चाहिए. क्योंकि हो सकता है आपके शरीर में बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग हो रही है और इस वजह से ब्लड प्रेशर कम हो गया है. आपको लैट्रिन में जो खून आ रहा है अगर वह बहुत ज़्यादा मात्रा में आ रहा है तो भी स्तिथि गंभीर हो सकती है. इतनी ज़्यादा ब्लीडिंग से आपको खून की कमी हो सकती है. इनमें से कोई भी लक्षण अगर आपको है तो आप डॉक्टर से अपना check अप ज़रूर करवाये. बच्चों में लैट्रिन के साथ थोड़ा ब्लड आना नार्मल है जो की बच्चों में अक्सर कब्ज की वजह से हो सकता है. बच्चों में anal फ़िशर भी काफ़ी कॉमन समस्या है. पर फिर भी आपको एक बार अपने paediatrician की राय ज़रूर लेनी चाहिए. जब आप अपने डॉक्टर के पास जाएँगे तो डॉक्टर आपकी history लेंगे और जानना चाहेंगे कि पहले से आपको कोई बीमारी तो नहीं है. या पहले से आप कोई दवा तो नहीं ले रहे हैं. आपसे पूछा जाएगा कि कहीं आपको पेट में या rectum में कोई चोट तो नहीं लगी है? क्या हर बार लैट्रिन जाने पर खून आ रहा है या कभी कभी आता है ? क्या अचानक आपका वजन कम हुआ है? क्या मोशन जाने के बाद पोंछते या धोते समय toilet पेपर या हाथ पर ही खून दिखा है? आपके मल का रंग कैसा है? ये परेशानी आपको कितने दिनों से हो रही है?

इसके अलावा क्या आपको दूसरे लक्षण भी है जैसे की पेट दर्द, खून की उल्टी होना, पेट फूलना, ज़्यादा गैस बनना, दस्त होना, बुख़ार होना आदि. फिर वह आपका clinical एग्जामिनेशन करेंगे जिस में वे मुख्यतया पेट का एग्जामिनेशन करते हैं और साथ ही साथ rectum का एग्जामिनेशन भी किया जाता है जिसके लिये digital examination या उँगली से एग्जामिनेशन किया जाता है. proctoscope का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इसके अलावा sigmoidoscopy या colonoscopy भी की जाती है जिस में एक दूरबीन मल द्वार के रास्ते डाली जाती है और बड़ी आँत के अंदर देखा जाता है. इसके अलावा आपकी कुछ खून की जाँचे भी करवायी जाती है जैसे की complete blood count, clotting studies, stool culture . कई बार एडवांस जाँचें करवाने की ज़रूरत भी पड़ती है जैसे की CT angiography. अगर आपको अनीमिया या खून की कमी के लक्षण है पर लैट्रिन में खून दिखायी नहीं दे रहा है और सारे कारणों को नकारा जा चुका है तो आपके लैट्रिन की भी जाँच करायी जा सकती है जिसे STOOL occult ब्लड टेस्ट कहा जाता है. इस टेस्ट में stool या मल की जाँच की जाती है और पता लगाया जाता है कि इसमें ब्लड तो नहीं है. क्योंकि ज़रूरी नहीं है कि पाचन तंत्र कि हर ब्लीडिंग में आपको लैट्रिन में खून साफ़ साफ़ नज़र आये. कईं बार लैट्रिन में खून होता है पर वह हमे हमारी आँखों से दिखायी नहीं देता है. ऐसे में इसे occult blood कहा जाता है.

तो दोस्तों ये थी कुछ ज़रूरी जानकारी की अगर आपको लैट्रिन में खून आ रहा हैं तो आपको किन बातों का ध्यान रखना हैं।
Dosto पाइल्स यानी बवासीर, फ़िशर और fistula latrine me khoon aane ke kuch common karan me se ek he aur aap agar inke barein me detail me janana chahte he to to aap right me die video par click karein.
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मोबाइल की लत कैसे छोड़े | पहचाने Mobile Addiction के लक्षण | Social Media Addiction HINDI https://thydoc.com/mobile-addiction-symptoms/ https://thydoc.com/mobile-addiction-symptoms/#respond Fri, 15 Mar 2024 08:37:21 +0000 https://thydoc.com/?p=1502 The post मोबाइल की लत कैसे छोड़े | पहचाने Mobile Addiction के लक्षण | Social Media Addiction HINDI appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, क्या आप हर थोड़ी थोड़ी देर में अपना फ़ोन चेक करते हैं? क्या आप किसी दोस्त या परिवार के साथ समय बिता रहे हैं पर फिर भी आप बीच बीच में फ़ोन उठाते है, social media check करते हैं कि आपके पोस्ट को कितने likes मिले? क्या आप बिना सोशल मीडिया चेक किए कुछ घंटे भी नहीं रह पाते हैं और जब भी आप social media platform पे जाते हैं तो वहाँ कब तीन चार घंटे निकल जाते हैं आपको पता भी नहीं चलता है? क्या आपको फ़ोन पर porn देखने की भी आदत है? क्या आपके smartphone की वजह से आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी, आपका काम, आपके रिश्ते और यहाँ तक की आपका स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है? तो दोस्तों आपको mobile से addiction है या यूँ कहे mobile की लत है. और आज हम इसी addiction या लत की बात करेंगे जो बच्चों से लेके बूढ़ों तक को लग गई है. और अगर हमने इसे जल्द ही नहीं रोका तो ये हमे और हमारी आने वाली पीढ़ियों को बहुत नुक़सान पहुँचा सकती है. नमस्कार दोस्तों , मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

आज के digitalized युग में बहुत ज़रूरी है की हम दुनिया के साथ चले और सारी technology को अपनाए और समझे. इनमें सबसे मुख्य है अभी जो आपके आँखों के सामने है वह. हम सबके पास smart phones हैं और हम समय समय पर इन्हें अपडेट करते रहते हैं और हम समझ गये हैं की हमारे smartphones और प्रगति करेंगे और नयी नयी टेक्नोलॉजी वाले smartphones आयेंगे पर इनका इस्तेमाल कभी बंद नहीं होगा. तो ज़रूरी है कि हम ये समझे की इनका उपयोग कितना करना है और कैसे करना है और कैसे इनका उपयोग हम कम कर सकते हैं.

दोस्तों, सबसे पहले हम बात करते हैं की कैसे mobile के ज़्यादा उपयोग से या ज़्यादा screen time से हमारी physical health और mental health पर असर हो रहा है. सबसे पहला असर तो हमारी आँखों पर हो रहा है जो स्क्रीन पर देखने से आँखों पर ज़ोर पड़ता है और लोगों की आँखें कमजोर हो रही है, बच्चों को जल्दी ही चश्मे लग रहे हैं. और इसी वजह से सरदर्द जैसी समस्या भी बढ़ गई है. लगातार मोबाइल को स्क्रीन देखने से गर्दन, कंधों और हाथों में जकड़न हो सकती है और cervical का दर्द भी होने लग सकता है. मोबाइल की स्क्रीन से harmful blue light निकलती है जो हमारी आँखों को तो नुक़सान पहुँचाती ही है पर इसके अलावा रात को मोबाइल के इस्तेमाल से यह लाइट आँखों के पर्दे पे जब गिरती है तो हमारे नींद के hormone यानी के melatonin का production कम कर देती है और हमारे circadian rhythm को भी डिस्टर्ब कर देती है जिससे insomnia मतलब अनिद्रा होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है. studies में ये भी पाया गया है कि अगर आप मोबाइल का इस्तेमाल रात 11 बजे से सुबह 4 बजे के बीच करते हैं तो इससे हमारे दिमाग़ में एक circuit trigger होता है जिसे Habenula कहा गया है. इस circuit के trigger होने से dopamine हॉर्मोन का लेवल कम हो जाता है जिससे निराशा बढ़ती है और depression भी हो सकता है. इसके अलावा आपका ध्यान जब सारे टाइम मोबाइल में रहता है तब ना तो आप अपने परिवार पे पूरी तरह ध्यान दे पाते हैं और ना ही दोस्तों के साथ समय बिता पाते हैं. इससे आपके रिश्तों में भी खटास आने लगती है.

तो देखा दोस्तों इसका असर कैसे हमारे भौतिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर होता है. और आजकल covid के बाद से ही work from होम का चलन भी बढ़ गया है इसलिए screen को पूरी तरह avoid करना भी संभव नहीं है. इसलिए यह जानना बहुत ज़रूरी है की mobile time या screen टाइम कम कैसे करे. सबसे पहला टिप में आपको ये दूँगा दोस्तों की आप अपने screen time को track करे. आजकल हर स्मार्टफ़ोन में ऐसी app और settings है जो आपको आपका daily या weekly screen time बताती है. और आप उन में अपना फिक्स screen टाइम सेट कर सकते हैं जिससे आपके मोबाइल पे alert आ जाएगा कि आपका आज का screen टाइम पूरा हो गया है या होने वाला है. अगर आप को लंबी video meetings लेनी पड़ती है तो टाइम schedule करे और बीच बीच में ब्रेक ले. ब्रेक के लिए अलर्ट भी आप अपने phone में सेट कर सकते हैं. लगातार स्क्रीन को ना देखें. मोबाइल देखते हूए खाना ना खाये. आदत डाले की खाना खाते समय सिर्फ़ खाने पे ध्यान देना है किसी screen पर नहीं. rule बना ले की अपने बेडरूम में मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करना है . और ख़ासकर दस बजे बाद तो बिलकुल नहीं. पर अगर आपको कोई ज़रूरी काम है मोबाइल पे तो mobile settings में जा के blue light filter ऑन कर ले. पर कोशिश ये ही रहे की दस बजे बाद मोबाइल को अपनी पहुँच से दूर रखे. सोते सोते मोबाइल का प्रयोग बिलकुल ना करे. अपने daily physical movement पे ध्यान दे की क्या आप ज़्यादा देर बैठे रहते हैं या आपको लगातार बैठे बैठे काम करना पड़ता है तो आप बैठे बैठे mobile का इस्तेमाल भी ज़्यादा करेंगे. इसलिए बीच बीच में उठे. थोड़ा घूमे stretches करे. toilet सीट पर मोबाइल का इस्तेमाल ना करे. रिसर्च में पाया गया है की ये आदत आपको constipation या कब्ज़ कर सकती है. इसके अलावा मोबाइल इस्तेमाल करते समय अपने posture पर भी ध्यान दे की कहीं ग़लत angle से तो आप स्क्रीन को नहीं देख रहे है. मोबाइल को इस्तेमाल करने के लिए गर्दन झुकाए नहीं बल्कि मोबाइल को अपने आँखों के लेवल पर ला के ही इस्तेमाल करे.

दोस्तों, अक्सर आपने ध्यान दिया होगा की आप मोबाइल का ज़्यादा इस्तेमाल तब करते हैं जब आप बोर हो रहे होते हैं या किसी काम में आपका मन नहीं लग रहा होता है या आप अपने लाइफ के स्ट्रेस से इतना परेशान हैं की आपको mobile या स्क्रीन की virtual दुनिया ज़्यादा अच्छी लगने लगती है. इसके लिए आप कोई नयी hobby अपनाये. जो भी आपको अच्छा लगता है वह sport खेले. अपने friends या परिवार के साथ activities प्लान करे. स्ट्रेस manage करने के लिए योगा और मैडिटेशन करे और अगर ज़रूरत हो तो psychiatrist की राय ले, थेरेपी ले. क्योंकि दोस्तों, जीवन बहुत छोटा है पर बहुत सुंदर है इसलिए मोबाइल की virtual दुनिया में अपनेआप को ना खोये. ये समय जो आप अपने partner के साथ quality time बिता के spend कर सकते हैं, अपने बच्चों के साथ खेल सकते है, अपने दोस्तों के साथ enjoy कर सकते हैं, उसे मोबाइल में ना खोये क्योंकि ये समय वापस नहीं आएगा.

 

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BLOATING, GAS, पेट के फूलने से छुटकारा पाएं | Get Relief From Gas & Bloating | BLOATING गैस का इलाज https://thydoc.com/get-relief-from-gas-bloating/ https://thydoc.com/get-relief-from-gas-bloating/#respond Fri, 15 Mar 2024 08:08:44 +0000 https://thydoc.com/?p=1470 The post BLOATING, GAS, पेट के फूलने से छुटकारा पाएं | Get Relief From Gas & Bloating | BLOATING गैस का इलाज appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तों, पेट में कभी कभी गैस होना और पेट का फूलना एक आम बात है पर समस्या तब हो जाती है जब पेट में गैस होना ही एक आम बात हो जाती है और आपका पेट हमेशा फूला रहता है और तो और, कई बार पब्लिक में गैस निकलने से आपको शर्मिंदा भी होना पड़ जाता है. अगर आप भी इस तकलीफ़ से परेशान हैं तो ये वीडियो अंत तक देखे. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर ऋषभ शर्मा, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन आसान शब्दों में देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में शेयर करें.

दोस्तों, सबसे पहले हम ये जानते है की bloating या गैस या पेट फूलना होता क्या है? जब आपको गैस की वजह से पेट भरा भरा और टाइट महसूस होता है तो उसे पेट फूलना, या bloating कहते हैं. लोग पेट फूलने को दूसरी बातों से कंफ्यूज कर सकते हैं जैसे की पेट का लटकना या ढीला पड़ना जो अक्सर बुढ़ापे में महिलाओं में देखा जाता है. इसलिए अगर आप एक महिला है तो ये समझना ज़रूरी है कि आपको ये समस्या असल में है या नहीं. Ya fir kai baar log motape ko ya pet me pani bharne ko bhi bloating se confuse karte he. To agar aapke motapa he to wazan kam karein aur agar pet me pani bhar gaya he to, doctor se ilaaj karein.

Dosto अब बात करते है पेट में गैस के कारणों की. इनमें सबसे पहला और सबसे प्रमुख कारण है कब्ज या constipation. क्या आपका पेट रोज़ साफ़ नहीं होता है? क्या आपको मोशन जाते समय ज़ोर लगाना पड़ता है? क्या आपका मोशन सख़्त होता है? क्या मोशन जाने के बाद भी आपको लगता है की पेट साफ़ नहीं हुआ है? अगर इनमें से किसी सवाल का जवाब हाँ है तो आपको कब्ज की समस्या है. इस वजह से stool या motion आँतों से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाता है. और ये स्टूल जितनी ज़्यादा देर आँतों में रहता है वहाँ के बैक्टीरिया इसे ferment करने लगते हैं और इस प्रक्रिया में गैस बनती है. कब्ज के अलावा पेट में गैस के दूसरे कारण भी हो सकते हैं जैसे की ibs या irritable bowel syndrome जहां patient ko stress ki wajah se pet fula hua mahsoos hota he ya fir कुछ खाने की वस्तुओं से digestive system ज़्यादा सेंसिटिव होता है और इन food products से गैस बनना और पेट फूलना जैसी दिक़्क़त होती है. अगला कारण है sibo या small intestinal bacterial overgrowth. सामान्यतया लोगो की आँतों में बैक्टीरिया होते है पर कम होते हैं पर आँतों के ऑपरेशन के बाद या ibs की वजह से कुछ लोगों में ये बैक्टीरिया ज़्यादा हो जाते है जो गैस बनाते हैं. अगला कारण है gastroparesis जहां पेट से भोजन जल्दी ख़ाली नहीं हो पाता है जिससे पेट फूलना, गैस बनना और जी घबराना जैसे लक्षण देखे जाते हैं. Next कारण है महिलाओं में ovaries और uterus की कुछ बीमारियों की वजह से महिलाएँ अक्सर पेट के फूलने से परेशान रहती है इसलिए महिलाओं को अपना gynecological check अप भी समय समय पर करवाने की सलाह दी जाती है. Iske alawa agar aap tez khana khate he to khane ke sath bhi gas pet me chali jati he, liquids pite samay ya carbonated drinks se bhi bloating ho sakti he.

तो दोस्तों, ye kuch कारण the jo pet me gas banate he, baki karan bhi me is video me aapse discuss karta rahunga. आइए अब बात करते हैं की कैसे आप इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं. इनमें सबसे पहला टिप है कि walk पर जाये, एक्सरसाइज करें . physical activity से aatin ki chal badti he, bowel motility badti he चलने लगती है जिससे पेट साफ़ भी अच्छे से होता है. दूसरे नंबर की सलाह में आपको ये देना चाहूँगा की आप कुछ योगा पोज़ try करे. बालासन और मलासन जैसे योगासन से पेट की गैस निकलने में आसानी होती है par hamesh yog aap ache yogachaarya se sikhe, aur agar aapke koi bimari he to us bimari ke bare me discuss karke yog chalu karein. अगला टिप है peppermint. peppermint के इस्तेमाल से पेट फूलने की समस्या से आप निजात पा सकते हैं. आप peppermint tea का इस्तेमाल कर सकते हैं या peppermint capsule भी ले सकते हैं. पर अगर आपको पेट में जलन की समस्या ,pet me reflux ki samsya भी है तो peppermint आपको avoid करना चाहिए. कुछ essential oils के इस्तेमाल से भी इस समय से कुछ हद तक आराम मिल सकता है. Iska ek example हैं सॉन्फ का तेल, . पर इन्हें भी एक्सपर्ट की देखरेख में ही इस्तेमाल करना चाहिये.

दोस्तों, ये तो हमने बात की कुछ घरेलू उपायों की पर ये लंबे समय तक चलने वाला इलाज नहीं है . लंबे समय तक गैस की समस्या से आराम पाने के लिये आपको कुछ लाइफस्टाइल में बदलाव लाने होंगे जैसे की खाने में धीरे धीरे फाइबर की मात्रा बढ़ाये. पर ध्यान रहे अचानक से डाइट में ज़्यादा फाइबर बढ़ाने से गैस की समस्या बढ़ सकती है इसलिए इसे धीरे धीरे बढ़ाये. अपने ख़ान पान में सोडा को हटाये और पानी को अपनाये. सोडा वाली drinks से और उन में पाये जाने वाले artificial sweetners से भी पेट में gas ज्यादा बनने लगती है. आप chewing gum का इस्तेमाल बंद कर दे. chewing gum में मिलने वाला sugar गैस बनाता है और इसको चबाते वक़्त जो हवा हम निगलते है वह भी पेट में गैस को इकट्ठा करती है. अगला महत्वपूर्ण टिप है एक्सरसाइज करे. अपनी जीवनशैली में व्यायाम को शामिल करे, जैसा कि मैंने आपको पहले बताया फिजिकल एक्टिविटी से आटो की चाल सही होती हैं. और इसलिए एक्सरसाइज को अपनी आदत में डाले. अगला टिप है रेगुलर अंतराल पे खाये. एक साथ ज्यादा खाने से या लंबे समय तक नहीं खाने से भी गैस बनती है इसलिए आप दिन में तीन बड़े meal लेने के बजाय दिन में पाँच से छै छोटे meals ले. खाना जल्दी खाने से आप खाने के साथ हवा भी निगलते है इसलिए आप धीरे धीरे चबा चबा कर खाना खाये. इसके अलावा जल्दी खाने से आप ज्यादा खाना खा लेते हैं क्योंकि आपको संतुष्टि का सिग्नल ब्रेन से आता है जो आधा घंटा लेता है. ज़्यादा खाने से भी आपको गैस की समस्या होती है. इसलिए आराम से बिना किसी गैजेट या मोबाइल के धीरे धीरे चबा चबा कर खाना खाए. कई लोग दिन भर कुछ ना कुछ खाते रहते है या चबाते रहते हैं ऐसा करने से भी ये लोग हवा को निगलते है जिस वजह से गैस बनती है. कुछ पीने के लिए straw के इस्तेमाल से भी आप हवा को पेट में ले लेते है इसलिए जिन लोगों को गैस की तकलीफ़ रहती है उन्हें straw का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अगला ज़रूरी टिप है कि आप अपने खाने में ज्यादा से ज्यादा probiotics ले. probiotics अच्छे बैक्टीरिया को आँतों में बढ़ाता है जिससे गैस बनाने वाले बैक्टीरिया पेट में कम होते हैं.

Iske alawa अगर आप नमक ज्यादा खाते है तो खाने में आपको नामक कम करना चाहिए क्योंकि नमक से पानी इकट्ठा होता है जिसे water retention कहते हैं और पेट फूला हुआ महसूस होता है. इसके अलावा आपको low fodmap डाइट लेनी चाहिए और एक फ़ूड diary maintain करनी चाहिए. इस डायरी में आप ये नोट करेंगे की किन खाने की चीज़ों से आपका पेट ज़्यादा फूलता है और गैस बनती है. low fodmap diet के बारे में जानने के लिए आप ऊपर दिये गये लिंक पे क्लिक करके हमारा ibs वाला वीडियो देख सकते हैं. दोस्तों, अगर इन सब बातों का ध्यान रखने के बावजूद आपको पेट फूलने और गैस की समस्या हो रही है तो आप को अपना check अप करवाना चाहिए की कहीं किसी और बीमारी की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा है. वैसे तो दोस्तों, पेट फूलना और गैस बनना एक साधारण सा लक्षण है पर अगर इसके साथ आपको कुछ और गंभीर लक्षण आ रहे हैं तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. ये लक्षण हो सकते हैं भूख में बदलाव होना यानी पहले से कम भूख लगना या ज्यादा भूख लगना, भोजन निगलने में तकलीफ़ होना, दस्त होना, उल्टी होना, वजन कम होना, बुख़ार होना, पेट में तेज दर्द होना, मोशन में ताज़ा खून का आना, काले या maroon रंग की पॉटी होना ya gas pas hona bilkul band ho jae. दोस्तों, पेट में गैस और पेट फूलने की तकलीफ़ से हम छुटकारा पा सकते है अगर हमे कारण का पता चल जाये तो,क्योंकि ज़्यादातर cases में यह कारण मामूली से होते है जो अक्सर लाइफस्टाइल और डाइट में बदलाव ला कर या गैस की सामान्य सी दवा ले के ठीक किए जा सकते हैं. पर अगर फिर भी आपकी तकलीफ़ ठीक नहीं हो रही है और दूसरे लक्षण भी आ रहे हैं तो आपको डॉक्टर से check up ज़रूर करवाना चाहिए.

Dosto IBS yani Irritable bowel syndrome ke ilaaj me diet Bohot important role play karti he, agar aap ye janana chahte he ki IBS me aapko kya diet leni chahie aur kya nahi khana chshie to aap right me die video par click karein.
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Tracheostomy क्या होती है? | जानिए Tracheostomy के Benefits और Tracheostomy Care कैसे करें in Hindi https://thydoc.com/tracheostomy-benefits-and-tracheostomy-care/ https://thydoc.com/tracheostomy-benefits-and-tracheostomy-care/#respond Fri, 15 Mar 2024 08:02:17 +0000 https://thydoc.com/?p=1448 The post Tracheostomy क्या होती है? | जानिए Tracheostomy के Benefits और Tracheostomy Care कैसे करें in Hindi appeared first on Thydoc Health.

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दोस्तो, हो सकता है आपने कभी सुना हो या ऐसा मरीज़ देखा हो जिसके गले में छेद किया हुआ हो और और ट्यूब डली हो. और आपने सोचा हो की ये क्या है? दोस्तों, ये tracheostomy है यानी tracheo- stomy यानी trachea में stomy या trachea या साँस की नली में छेद है. आज हम इसी topic पर चर्चा करेंगे की tracheostomy क्या होती है? इसे बनाने की ज़रूरत आख़िर क्यों पड़ती है? Iske fayde kya hai, इसकी देखभाल घर पे कैसे की जाती है? tracheostomy hone par patient ko किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है? Aur isse se jude hue sare bhramo ko hum door karenge, नमस्कार दोस्तों , मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

दोस्तों, सबसे पहले जानते हैं की tracheostomy क्यों बनानी पड़ती है और किन मरीज़ों में इसकी ज़रूरत पड़ती है? वे मरीज़ जिन्हें सर में अंदरूनी कोई चोट लगी है, या stroke के मरीज़ या वे मरीज़ जिन्हें रीढ़ की हड्डी में कोई चोट लगी है और उन्हें लकवा हुआ है, या वे मरीज़ जिन्हें larynx या voice box का कैंसर है और उसकी वजह से ऑपरेशन हुआ हो या head एंड neck का कैंसर हो. इन सभी मरीज़ों में एक बात common हो सकती है, वह ये कि इन सभी मरीज़ों को ventilator से साँस देने की ज़रूरत पड़ी है क्योंकि ये मरीज़ ख़ुद से साँस नहीं ले पा रहे हैं या अपना airway यानी साँस का रास्ता protect ना कर पा रहे है. ऐसे मरीज़ों में मुँह में बनने वाला थूक या secretions इकट्ठा होता रहता है और वे इसे निगल नहीं पाते हैं और ये थूक साँस कि नली के रास्ते फेफड़ों में जा सकता है जिसे मेडिकल भाषा में aspiration कहते हैं और ये थूक फेफड़ों में जाके फेफड़ों को ख़राब कर सकता है. इन सभी मरीज़ों को पूरी तरह ठीक होने में महीनों या सालों भी लग सकते हैं और इसलिए इन मरीज़ों में tracheostomy की ज़रूरत पड़ती है. icu में ventilator से weaning मतलब ventilator से हटाने में भी tracheostomy मदद करती है. अक्सर जब मरीज़ के relatives को tracheostomy की ज़रूरत के बारे में doctors बताते हैं तो relatives अक्सर घबरा जाते हैं, parantu aako darne ki jarurat hai, इसके लिए doctor आपको पहले पूरे procedure को कैसे किया जाएगा ये समझाते है. आपसे counseling form पर sign कराये जाते है और आपसे consent भी ली जाती है. अब आप सोचेंगे की साँस की नली से भी साँस दी जा सकती है तो tracheostomy क्यों. दोस्तों, साँस की नली ya jise medical bhasha me endotracheal tube kaha jata hai, muh se साँस की नली में डाली जाती है जिसे वेंटीलेटर से जोड़ा जाता है और साँस दी जाती है. ये साँस की नली लंबी होती है जिससे scretions से ब्लॉक होने का ख़तरा बढ़ जाता है. और अपनी जगह से हिलने का रिस्क भी ज़्यादा रहता है. ये मुँह के रास्ते डाली जाती है जिससे मुँह occupy हो जाता है, मुँह की सफ़ाई ठीक से हो नहीं पाती है और मरीज़ दांतों से tube को दबा भी सकता है. मरीज़ कुछ खा पी भी नहीं सकता है. मरीज़ बोल भी नहीं पाता है. इसलिए उन मरीज़ों में tracheostomy की जाती है जिन में लंबे समय तक airway को protect करने की ज़रूरत होती है.

अब जानते हैं कि tracheostomy के फ़ायदे क्या है? यह वेंटीलेटर से मरीज़ को हटाने में मदद करती है, इसके बाद मुँह की सफ़ाई की जा सकती है, मरीज़ खा पी भी सकता है, मरीज़ बोल भी सकता है, आवाज़ पहले जैसी नहीं होगी पर मरीज़ आपको अपनी बात समझा पाएगा, tracheostomy tube का अपनी जगह से displace होने का रिस्क कम होता है, ट्यूब की सफ़ाई करना भी आसान है, ट्यूब को बदलना भी आसान होता है. tracheostomy किसी भी उम्र के मरीज़ में की जा सकती है फिर वह चाहे बच्चा हो या बूढ़ा.

tracheostomy दो तरह से की जा सकती है. पहला तरीक़ा है surgical जिस में गले पर चीरा लगा कर trachea को expose किया जाता है और trachea में चीरा लगाके tracheostomy tube डाली जाती है. दूसरा तरीक़ा है per cutaneous tracheostomy या pct जिस में एक अलग किट आता है जिसकी मदद से tracheostomy बनायी जाती है. pct surgical tracheostomy की तुलना में एक महँगा प्रोसीजर है क्योंकि pct kit ही काफ़ी महँगा आता है. पर pct का फ़ायदा ये होता है की यह icu में मरीज़ के bedside पे ही हो जाती है और इसे icu के डॉक्टर भी कर सकते हैं जबकि surgical tracheostomy के लिए मरीज़ को operation theatre में ले कर surgery करनी पड़ती है जो सिर्फ़ ent सर्जन ही करते हैं. tracheostomy से मरीज़ को ventilator से कनेक्ट करके साँस दी जा सकती है या सिर्फ़ oxygen से connect कर t piece से साँस दी जा सकती है. और मरीज़ अगर ख़ुद से साँस ले पा रहा है पर हमे aspiration से बचाना है तो मरीज़ को tracheostomy के साथ room air पे भी छोड़ा जा सकता है. और tracheostomy के साथ घर भी भेजा जा सकता है.
अब थोड़ा tracheostomy tube के बारे में जान लेते हैं. tracheostomy tube कई sizes में उपलब्ध है और यह tube क़रीब पाँच सेंटी मीटर की होती है. इसके गले वाले हिस्से पे बांधने के लिये tie होती है जिससे ट्यूब को अपनी जगह फिक्स किया जाता है. trachea वाले छोर पर एक cuff होता है जो बाहर एक pilot balloon से connected होता है और यहीं से कफ में हवा डाली जाती है. इस हवा से कफ फूलता है और trachea में फिट हो जाता है. इस कफ का ये फ़ायदा है की थोड़ा थूक भी इस कफ को cross कर के फेफड़ों में नहीं जा सकता है. जब मरीज़ को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया जाता है तो tracheostomy care मरीज़ के attendant को सिखाई जाती है. इसलिए जब भी आपको ये बताया जाये आपको ध्यान से सीखना है और अगर कोई सवाल आपके मन में है तो वह भी आप पूछ सकते हैं.

अब बात करते हैं की कैसे घर पे आपको tracheostomy की केयर करनी है और किन बातों का ध्यान रखना है. घर पे आपको tracheostomy tube का सक्शन करना है . आपको हर एक से दो घंटे में सक्शन से इस tube की सफ़ाई करनी है जिससे की ट्यूब में secretions जमा हो कर उसे ब्लॉक ना कर दे. सक्शन के लिये suction catheter का इस्तेमाल किया जाता है और इसे गले में बने छेद में एक उँगली जितनी गहराई तक डालना चाहिए. मरीज़ को Nebulise भी कर सकते है जिस में भाप की फॉर्म में दवा इस छेद से दी जाती है. यह भाप छेद से ले कर फेफड़ों तक के रास्ते में इकट्ठे हुए secretions को पिघलाने का काम करती है जिससे की खांसी से ये secretions बाहर निकल पाये. आपको एक एक्स्ट्रा ट्यूब घर पे रखनी है क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर tube को बदलना पड़ सकता है. और निकाली गई ट्यूब को आप एक ऐसे बर्तन में रखे जिस में एक लीटर पानी में एक ढक्कन savlon मिलाया हुआ है. इस घोल में रखने से ट्यूब को साफ़ करना आसान हो जाता है. अगर tracheostomy tie गंदी हो गई है तो इन्हें भी आपको बदलना है. हर दो घंटे पर tube के कफ की हवा थोड़ी देर के लिए निकालनी है और थोड़ी देर बाद फिर से डालनी है. ऐसा करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि कफ के लगातार दबाव से trachea पे प्रेशर पड़ता है और trachea कमजोर हो सकती है जिसे tracheomalacia भी कहते हैं. tracheomalacia की वजह से साँस की नली collapse हो सकती है या पिचक सकती है इसलिए समय समय पर cuff deflate करना ज़रूरी है. गले पे बने मुँह के चारों और भी समय समय पर सफ़ाई करनी है. मरीज़ को ये ध्यान रखना है की ये ट्यूब पानी में डूबनी नहीं चाहिए यानी bathtub और swimming pool आपको avoid करना है. आपको नहाते समय भी ये ध्यान रखना है आपकी ट्यूब में पानी नहीं जाना चाहिए इसलिए शावर भी ध्यान से ले. एक गीले gauze पीस को हमेशा tracheostomy के मुँह पर रखना है जिससे की बाहर की सूखी हवा फेफड़ों में ना पहुँच पाये और इस गीली gauze piece से हवा में नमी आ जाये. बाज़ार में tracheostomy के लिए special humidifier या फ़िल्टर भी मिलते है पर ये सभी लोग afford नहीं कर सकते है तो ऐसे में गीला gauze piece एक best alternative है.

दोस्तों, ऐसा नहीं है कि tracheostomy अगर एक बार हो गई तो ज़िंदगी भर रहेगी. जैसे ही वह बीमारी जिसकी वजह से tracheostomy की गई थी, ठीक होने लगती है और मरीज़ अपना airway protect करने में सक्षम हो जाता है यानी साँस अच्छे से ले पा रहा है और खाना बिना खांसी के निगल पा रहा है तो डॉक्टर tracheostomy हटाने का प्लान बना सकते है. tracheostomy closure के लिए इस ट्यूब को निकाल कर ड्रेसिंग कर दी जाती है और यह घाव धीरे धीरे अपनेआप भर जाता है. तो दोस्तों, आज हमने जाना tracheostomy के बारे में और उसके रख रखाव के बारे में. tracheostomy से घबराने की ज़रूरत नहीं है. क्योंकि ये मरीज़ के साँस के रास्ते को बचाने के लिए बनायी जाती है. इसे आप मरीज़ की केयर में एक step down समझे. यानी मरीज़ ठीक तो हो रहा है पर पूरी तरह से ठीक नहीं है और इसीलिए tracheostomy की जा रही है. और जैसे ही मरीज़ पूरी तरह ठीक होने लगता है इसे हटा दिया जाता है. हाँ! इसमें समय लगता है. केयर लगती है. इसलिए आपको सब्र तो रखना होगा. पर मरीज़ ठीक होता है और tracheostomy closure कर दिया जाता है और मरीज़ फिर से पहले कि तरह साँस ले पाता है.

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