Ventilator!! दोस्तों, ये नाम सुनते ही आप क्या सोचते है? साँस की मशीन? life सपोर्ट? oxygen? icu? जी हाँ दोस्तों, ventilator एक लाइफ support system है जो अक्सर icu में इस्तेमाल होता है जब मरीज़ को मशीन से साँस देने कि ज़रूरत पड़ती है या फिर और भी किसी कारण से मरीज़ को ventilator पर लेना पड़ता है .क्या वेंटीलेटर सिर्फ़ icu में ही इस्तेमाल होता है? क्या वेंटीलेटर घर पे भी इस्तेमाल किया जा सकता है? किस तरह के patients को ventilator की ज़रूरत पड़ती है और ventilator को हटाया कैसे जाता है, ऐसी ही कई बातें और कुछ भ्रांतियों के बारे में हम आज इस वीडियो में बात करेंगे. नमस्कार दोस्तों , मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें.

दोस्तों, सबसे पहले जानते है की वेंटीलेटर क्या होता है? वेंटीलेटर को साँस की मशीन कहना ग़लत नहीं होगा. क्योंकि ये एक ऐसी microprocessor द्वारा चलने वाली मशीन है जिसका काम है गैस के मिक्सचर को हमारे फेफड़ों में में डालना और ख़राब गैस जिसे co2 कहते हैं उसे निकालना या यूँ कहे की ventialtor एक artificial lung की तरह काम करता है, यह वेंटीलेटर ऑक्सीजन सप्लाई से connected होता है जिससे ये गैस मिक्सचर बनता है जिस में एक गैस oxygen होती है और दूसरी गैस normal air ya हवा होती है और इससे oxygen का प्रतिशत फेफड़ों में कितना देना है ये decide किया जा सकता है. वेंटीलेटर से ये गैस मिक्सचर फेफड़ों में पहुँचाने के लिए मरीज़ को या तो मास्क से जोड़ना पड़ता है जहां इसे non invasive ventilation या niv कहते है या फिर मरीज़ को intubate करना पड़ता है यानी की साँस कि नली मरीज़ के मुँह से होती हुई श्वास नली में डालनी पड़ती है जहां इसे medical भाषा में invasive mechanical ventilation कहा जाता है, इस नली को endotracheal tube कहते हैं इस ट्यूब के माध्यम से वेंटीलेटर की tubing और फेफड़ों के बीच में connection बनता है और वेंटीलेटर के गैस के flow से फेफड़े फूलते हैं.

दोस्तों, जिन लोगो को लंबे समय तक वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है ऐसे मरीज़ों में साँस की ट्यूब हटा के मरीज़ के गले में स्वास नली या trachea में एक छेद कर दिया जाता है जो फेफड़ों और वेंटीलेटर के बीच एक कनेक्शन का काम करता है जिसे tracheostomy कहते हैं. अब जानते हैं कि वे कौनसे मरीज़ होते हैं जिन्हें वेंटीलेटर कि ज़रूरत पड़ती है. दोस्तों, हमारे शरीर के हर ज़रूरी फंक्शन की तरह हमारी स्वास का कंट्रोल हमारे दिमाग़ से होता है तो वे मरीज़ जिन्हें सर या दिमाग़ में कोई बीमारी है या चोट लगी है जिससे वे ठीक से साँस नहीं ले पा रहे है या अपनी निगलने की क्षमता खो चुके है जिससे पेट का खाना खाने की नली से मुँह में आ सकता है और वही ख़ाना साँस की नली में जा सकता है, या ऐसे मरीज़ जिनका श्वसन तंत्र किसी ज़हर की वजह से प्रभावित हुआ है , ऐसे मरीज़ों को वेंटीलेटर पे लेना बहुत ज़रूरी हो जाता है. इसके अलावा तो आप जानते ही है की अगर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है और ख़राब गैस यानी carbon di oxide बढ़ रही है तो ऐसे मरीज़ों को वेंटीलेटर पे ले कर साँस देनी पड़ती है जिससे शरीर से co2 को निकाला जा सके और ऑक्सीजन कि पूर्ति कि जा सके. ऐसा अक्सर तब होता है जब फेफड़ों में कोई बीमारी या इन्फेक्शन हुआ हो जैसे की निमोनिया जो की बैक्टीरिया, वायरस या फंगस किसी से भी हो सकता है, इसके अलावा ards या acute respiratory distress syndrome नामकी बीमारी में भी वेंटीलेटर की आवश्यकता होती है जहां इन्फेक्शन की वजह से फेफड़ों में पानी भरने लगता है. इसके अलावा जिन लोगों को copd या दमे की शिकायत है इन लोगों में भी कई बार ventilator की ज़रूरत पड़ती है. इसके अलावा ऑपरेशन के दौरान general anesthesia या पूरी बेहोशी में होने वाले ऑपरेशन में भी मरीज़ को वेंटीलेटर पे लिया जाता है.

तो दोस्तों, वेंटीलेटर icu में तो होता ही है पर hospital के कई और areas में भी इसका इस्तेमाल होता है जैसे की high dependant units जिन्हें short में hdu कहते हैं और operation theatre में भी वेंटीलेटर का उपयोग होता है. यहाँ तक कि घर पे भी वेंटीलेटर का इस्तेमाल अब संभव है. दोस्तों, वेंटीलेटर कैसे काम करेगा, कितना काम करेगा और मरीज़ की साँस को कितना कंट्रोल करेगा ये वेंटीलेटर की settings पर निर्भर करता है जो expert डॉक्टर सेट करते हैं. इस setting में ये सेट किया जाता है, मरीज़ को कितनी परसेंट ऑक्सीजन जायेगी, कितना फ्लो जाएगा, फेफड़ों को फुलाने के लिए कितना volume चाहिए, मरीज़ एक मिनट में कितनी बार साँस लेगा और इसके अलावा peep जो एक ऐसा प्रेशर है जो बीमार फेफड़ों को पूरी तरह पिचकने से बचाता है. मरीज़ की हालत में सुधार उसकी क्लिनिकल कंडीशन और vitals मतलब मरीज़ का blood pressure, उसके खून में oxygen की मात्रा , मरीज़ की heart rate के अनुसार देखा जाता है. इसके अलावा मरीज़ के arterial blood से abg की जाँच की जाती है जिससे मरीज़ के ब्लड में oxygen, carbon di oxide, acid, आदि चेक किए जाते है जिसके अनुसार वेंटीलेटर की सेटिंग में समय समय पर बदलाव किए जाते हैं. रोज़ छाती का एक्स रे करा कर भी मरीज़ के फेफड़ों की स्तिथि में सुधार आंका जाता है. जब मरीज़ वेंटीलेटर पे होता है तो फ़िज़ियोथेरपिस्ट द्वारा रोज़ दिन में एक से दो बार मरीज़ को फ़िज़ियोथेरेपी भी दी जाती है जिससे मरीज़ के फेफड़ों में बलगम एक जगह जमा ना हो और फेफड़ों की exercise भी हो. जैसे जैसे मरीज़ की स्तिथि में सुधार होता है वेंटीलेटर सपोर्ट कम किया जाता है जिस में मुख्यतया oxygen और peep होते है. जब ये दोनों parameter minimum लेवल पर आ जाते है और साथ ही साथ मरीज़ की अवस्था में भी सुधार होता है और जिस कारण से मरीज़ को वेंटीलेटर पे लिया गया था उस बीमारी में भी सुधार हो जाता है तो मरीज़ को weaning trial दिया जाता है जिसका मतलब है ये देखा जाता है कि बिना वेंटीलेटर के मरीज़ ख़ुद से कितनी साँस ले पा रहा है और जो साँस ले रहा है क्या वह पर्याप्त है और साँस लेने में मरीज़ को परेशानी तो नहीं हो रही है या मरीज़ को ज़्यादा ज़ोर लगा के तो साँस नहीं लेनी पड़ रही है या मरीज़ का साँस तो नहीं फूल रहा है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए धीरे धीरे स्टेप by step ventilator support कम करते हुए वेंटीलेटर हटा दिया जाता है.

दोस्तों, ventialtor से जुड़ा एक भ्रम है की अक्सर आपने देखा होगा की जो मरीज़ वेंटीलेटर पे होते हैं वे हमेशा सोते रहते हैं और कुछ relatives को तो ये तक लगता है की उनका मरीज़ मर चुका है. जब किसी भी मरीज़ को वेंटीलेटर पे रखा जाता है तो मरीज़ को बेहोशी और दर्द की दवा दे कर सुला दिया जाता है और ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि गले में डालने वाली साँस कि नली से मरीज़ को दर्द हो सकता है और मरीज़ uncomfortable हो सकता है, इसलिए इन दवाओं से मरीज़ को आराम दिया जाता है. इसके अलावा अगर मरीज़ होश में रहेगा और वेंटीलेटर से साँस जाएगी और अगर मरीज़ ख़ुद से भी साँस लेने की कोशिश करेगा तो वेंटीलेटर की साँस को वह resist करेगा जिससे वेंटीलेटर अपना काम ठीक से नहीं कर पाएगा इसलिए भी मरीज़ को इन दवाओं से सुला दिया जाता है जिससे वेंटीलेटर अच्छी तरह साँस दे पाये. पर दोस्तों, दिन में एक बार रोज़ मरीज़ की ये दवाएँ बंद कि जाती है मरीज़ को जगाया जाता है और मरीज़ का response देखा जाता है और तभी रिश्तेदारों को भी दिखाया जाता है.

दोस्तों, वेंटीलेटर के साथ भी कुछ complications हो सकते है जिन में सबसे पहले आते है साँस कि नली डालते समय मुँह और दांतों में चोट, ventilator के कारण होने वाला pneumonia, ventilator को अगर सही तरह से operate नहीं किया जाये तो फेफड़ों में injury भी हो सकती है. दोस्तों, लोग मानते हैं की वेंटीलेटर का मतलब है अंत. नहीं दोस्तों, वेंटीलेटर एक ऐसा life support है जो मरीज़ को तब तक सपोर्ट करता है जब तक मरीज़ अपनी बीमारी से मुक्त नहीं हो पाता है. जैसे ही मरीज़ ठीक हो जाता है और ख़ुद से साँस लेने में सक्षम हो जाता है तो वेंटीलेटर को धीरे धीरे हटा दिया जाता है. यहाँ तक कि मरीज़ को tracheostomy के साथ भी घर bheja ja sakta है. कुछ लोग सोचते हैं की वेंटीलेटर ऑक्सीजन supply करता है. नहीं दोस्तों, ऑक्सीजन सप्लाई को वेंटीलेटर से जोड़ा जाता है तब वेंटीलेटर ऑक्सीजन के मिक्सचर को फेफड़ों में भेजता है. अगली भ्रांति ये है की वेंटीलेटर सिर्फ़ हॉस्पिटल में ही इस्तेमाल हो सकता है. जिन लोगों को लंबे समय तक वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है और उनकी बाक़ी clinical condition अच्छी है ऐसे लोगों के लिए घर पे भी ventilator की व्यवस्था की जा सकती है. अगली भ्रांति ये है की आप वेंटीलेटर पे हैं तो आप ना बोल सकते हैं और ना ही कुछ खा या पी सकते है.

दोस्तों, अगर मरीज़ को स्वास नली डली है तो ऐसे मरीज़ बोल नहीं पायेंगे और खा पी भी नहीं पायेंगे पर अगर मरीज़ को ventilator से जुड़े हुए mask से साँस दी जा रही है तो ऐसे मरीज़ बोल भी सकते हैं और ख़ाना पीना भी कर सकते है. अगली भ्रांति जिसका हम निदान करना चाहेंगे वह यह है की हॉस्पिटल में मृत व्यक्ति को भी वेंटीलेटर पे रखा जाता है. ये बिलकुल ग़लत है दोस्तों. जहां वेंटीलेटर एक life support measure है पर ये भी तभी तक काम करता है जब तक दिल की धड़कन चल रही है पर जैसे ही मरीज़ की दिल की धड़कन रुक जाती है तो मरीज़ के शरीर में मृत्यु के बाद के बदलाव आने लगते है जैसे की शरीर में ऐंठन या rigor mortis आदि आना जिसे छुपाना नामुमकिन है इसलिए ये कहना सरासर ग़लत है कि सिर्फ़ हॉस्पिटल का बिल बढ़ाने के लिए मृत्यु के बाद भी वेंटीलेटर से साँस दी गई है.