दोस्तों, अक्सर आपने आसपास या घर पे आपने देखा होगा की कैसे बुजुर्गों को हल्की से चोट पे फ्रैक्चर हो जाता है. ऐसा इसलिए होता है , क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ उनकी हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं. आख़िर उनकी हड्डियों क्यों कमजोर होती है? और किन लोगो की हड्डियाँ कमजोर हो सकती है? और आप किन बातों का ध्यान रख के अपनी हड्डियों को मज़बूत रख सकते हैं? ऐसे ही सारे सवालों का जवाब आपको हम आज इस वीडियो में देंगे इसलिए हमारे साथ इस वीडियो के अंत तक जुड़े रहिए. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर दिवांशु गुप्ता, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारा चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में शेयर करें.
दोस्तों, भगवान ने हमारे शरीर में हड्डियों को इतना मज़बूत बनाया है की वे किसी भी तरह का वजन और चोट झेल सकती है पर जब हड्डियाँ इतनी कमजोर हो जाती है जहां मामूली सी चोट लगने पर भी फ्रैक्चर हो जाता है, ऐसी कंडीशन को मेडिकल भाषा में osteoporosis कहते है. ऐसी कंडीशन में bone मिनरल density या घनत्व कम हो जाता है या यूँ कहे हड्डियाँ खोकली हो जाती है. उम्र के साथ हड्डियाँ अपना घनत्व खोने लगती हैं पर साथ ही साथ नयी ग्रोथ भी हड्डियों में होती है जिसे remodeling कहते हैं. इस प्रक्रिया में जब असंतुलन हो जाता है तब हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं. ज़्यादातर लोगों को तो ये पता भी नहीं चलता है की उनकी हड्डियाँ कमजोर है और ये तब पता चलता है जब उन्हें कोई फ्रैक्चर हो जाता है इसलिए इस बीमारी को silent killer भी कहते हैं.
osteoporosis किसी भी हड्डी को कमजोर कर सकता है पर सबसे ज़्यादा केस में जिन हड्डियों में osteoporosis की वजह से फ्रैक्चर common है वे हड्डियाँ हैं- कूल्हे की हड्डी, कलाई की हड्डियाँ और रीढ़ की हड्डी. osteoporosis में हड्डियों के कमजोर होने के साथ साथ कुछ और भी लक्षण देखने को मिल सकते हैं. वैसे तो फ्रैक्चर होना ही इसका सबसे कॉमन लक्षण है पर इसके अलावा भी आप कुछ लक्षण नोटिस कर सकते हैं जैसे की आपको थकान रहने लगती है और शरीर में जगह जगह दर्द हो सकता है, आपकी हाइट कुछ इंच कम हो जाती है, आपका नेचुरल posture बदल जाता है और आप आगे की और झुक जाते हैं या कूबड़ निकल आता है, अगर रीढ़ की हड्डी पर असर हुआ है और रीढ़ की हड्डी कमजोर हुई है तो आपको कमर दर्द के साथ साँस लेने में भी तकलीफ़ हो सकती है. अब बात करते हैं की osteoporosis होता क्यों है? हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं की तरह हड्डियों में भी सेल्स का turnover चलता रहता है यानी पुरानी सेल्स मरती है नयी सेल्स बनती है. तीस साल की उम्र तक सेल्स नष्ट होने से ज़्यादा बनती है पर 35 साल के बाद सेल्स इतना जल्दी जल्दी नष्ट होने लगती है कि नयी सेल्स उन्हें पूरी तरह से replace नहीं कर पाती है. इसके कारणों के अनुसार osteoporosis को दो तरह का बताया गया है- primary और secondary. primary osteoporosis उम्र के बढ़ने की वजह से या मीनोपॉज की वजह से होता है और secondary शरीर में होने वाली किसी और बीमारी की वजह से होता है जैसे की liver disease, kidney की बीमारी, thyroid या डायबिटीज.
अब बात करते हैं की osteoporosis या हड्डियों के कमजोर होने का ख़तरा किन लोगों को ज़्यादा है? इनमें सबसे पहले आते है हमारे बुजुर्ग जो पचास साल से ऊपर है, दूसरे नंबर पे वे महिलायें आती है जो menopause में चली गई है यानी जिनके periods बंद हो गये हैं , तीसरे वे लोग जिनके परिवार में हड्डियाँ कमजोर होने की बीमारी है, अगले है वे लोग जो काफ़ी दुबले होते है, इसके अलावा वे लोग जो स्मोकिंग करते हैं, शराब का सेवन ज़्यादा करते है और तंबाकू भी खाते हैं. इसके अलावा कुछ बीमारियों की वजह से भी हड्डियाँ कमजोर हो सकती है जैसे की थाइरोइड और parathyroid ग्रंथियों की बीमारी, डायबिटीज में, पेट की बीमारियों जिन में आते है celiac disease और inflammatory bowel disease, कुछ autoimmune बीमारियों जैसे की rheumatoid arthritis और ankylosing spondylitis, इसके अलावा multiple myeloma जैसे ब्लड कैंसर. कुछ दवाओं की वजह से भी osteoporosis हो सकता है जिन में आती है diuretics जो की शरीर से एक्स्ट्रा पानी निकालने के लिए दी जाती है. ये अक्सर high ब्लड प्रेशर के मरीज़ों में दी जाती है या उन्हें दी जाती है जिन्हें दिल की बीमारी है, या जो kidney failure के मरीज़ है, next है steroids, और मिर्गी की दौरे के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएँ, कैंसर के लिए दी जाने वाली हॉर्मोन थेरेपी, खून पतला करने वाली दवाएँ और acidity के लिए ली जाने वाली दवाएँ. इसके अलावा अगर आपने अपना वजन कम कराने की सर्जरी करायी है तो वह भी हड्डियों के कमजोर होने का कारण हो सकती है. इसके अलावा दोस्तों अगर आप डाइट में कैल्शियम और विटामिन डी कम लेते हैं और आप एक्सरसाइज भी regularly नहीं करते हैं तो भी आपको osteoporosis हो सकता है.
अब जानेंगे कि osteoporosis का डायग्नोसिस कैसे होता है, इसका पता कैसे चलता है? दोस्तों, एक्स रे में भी हड्डी के कमजोर होने का पता चल
सकता है पर इसके लिए best investigation है dexa scan जिससे bone mineral density का पता चलता है. अगर dexa जाँच में t score minus 2.5 से कम है तो आपको osteoporosis है और अगर ये स्कोर माइनस 3.5 से कम है तो आपको severe osteoporosis है और आपको फ्रैक्चर का ख़तरा बहुत ज़्यादा है. अगर आप पचास साल से ज़्यादा हैं या आप महिला है और आपको menopause हो गया है तो आपको समय समय पर ये जाँच कराते रहना चाहिए. दोस्तों, अब बात करेंगे इसके इलाज की. osteoporosis में सबसे ज़रूरी है हड्डियों को फ्रैक्चर से बचाना इसके लिये आपको लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ कुछ ऐसी दवाएँ भी लेने की सलाह दी जाती है जो ना सिर्फ़ bone loss को कम करती है बल्कि जो बोन tissue है उसे मज़बूत भी करती है. लाइफस्टाइल changes में सबसे पहले आता है एक्सरसाइज- रेगुलर कसरत से हड्डियाँ तो मज़बूत होती ही है साथ ही साथ हड्डियों से जुड़े मांसपेशियाँ, tendon और ligament भी मज़बूत होते हैं. osteoporosis से बचाव के लिए कसरत में भी सबसे लाभदायक कसरत है वजन उठाने वाली कसरत जिससे आपका बैलेंस सही रहता है और मांसपेशियाँ भी मज़बूत होती है. वे कसरत जो ग्रेविटी के opposite काम करती है जैसे की walking, योगा, pilates भी आपके लिये काफ़ी फ़ायदेमंद होती है. ये exercises आपकी हड्डियों पे ज़्यादा ज़ोर भी नहीं डालती है. ideally आपको physiotherapist की राय ले कर अपने लिए एक एक्सरसाइज regime या रूटीन बनाना चाहिए. इसके अलावा आपको कैल्शियम और विटामिन डी supplements भी लेने चाहिए. इसके अलावा डॉक्टर आपकी bone डेंसिटी को देखते हुए osteoporosis के लिए बनी कुछ विशेष दवाएँ भी recommend कर सकते हैं जो आपकी नयी हड्डी के निर्माण में मदद करती है या फिर हड्डी को नष्ट होने से बचाती है. जो महिलायें menopause में है उन्हें hormone replacement therapy भी दी जाती है. osteoporosis से बचाव के लिए आप अपनी डाइट में कैल्शियम बढ़ाये. सप्ताह में कम से कम पाँच दिन आधा घंटा एक्सरसाइज करे और weights ज़रूर उठाये. दोस्तों, ऐसे लोग जिनकी हड्डियाँ कमजोर है उन्हें गिरने या चोट लगने से बचाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर हड्डियाँ कमजोर है तो मामूली सी चोट से भी फ्रैक्चर हो सकता है.
इसलिए कुछ बातों का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए जैसे की गाड़ी में बैठे तो हमेशा सीट बेल्ट लगाये, बाथरूम का फ़र्श गीला ना रहने दे, ऐसे क़ालीन या पायदान ना बिछाए जिस में पैर उलझ सकता है, एक्सरसाइज और walk करते समय एक्सरसाइज उपर्युक्त कपड़े और sport shoes पहने, घर पे कुर्सी या टेबल पर खड़े हो कर कोई काम ना करे. अगर आपको चलने में या बैलेंस बनाने में तकलीफ़ है तो छड़ी या walker का सहारा ले कर चले. इन सब बातों का ध्यान रखना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि अगर ऐसी हड्डियों में फ्रैक्चर हो जाए तो फिर उसका इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसी हड्डियों में ऑपरेशन से screw fix करना भी संभव नहीं हो पाता है.