क्या आपको हमेशा एसिडिटि और गैस की समस्या रहती है? क्या आपको अक्सर पेट में जलन रहती है? और आप अक्सर street food enjoy करते हैं? तो दोस्तों, हो सकता है कि आपको h pylori bacteria का इन्फेक्शन हो गया हो. और क्या आप को पता है की भारत में 60 से 70 प्रतिशत लोगों को यह इन्फेक्शन है. नमस्कार दोस्तों, मैं डॉक्टर ऋषभ शर्मा, thydoc हेल्थ पे आपका स्वागत करता हूँ. thydoc health आपको scientifically backed सही और ज़रूरी मेडिकल एजुकेशन आसान शब्दों में देने के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी ज़रूरी मेडिकल जानकारी प्राप्त करने के लिये आप हमारे चैनल को subscribe करें और ये वीडियो अपने दोस्तों और परिवार में शेयर करें.
दोस्तों, h pylori नाम के इस बैक्टीरिया का इन्फेक्शन तब होता है जब यह बैक्टीरिया पेट में जाके सुजान ला देता है. और कई बार यह इन्फेक्शन अक्सर बचपन में ही हो जाता है जब यह बैक्टीरिया दूषित खानपान के ज़रिए पेट में पहुँचता है और पेट में ही अपना घर बना लेता है. इस बैक्टीरिया की ख़ास बात यह है कि यह पेट के acid में भी जीवित रह पाता है. h pylori, peptic अलसर, पेट की और duodenum ki सूजन का मुख्य कारण है और दुनिया में आधे से ज़्यादा लोग इस बैक्टीरिया से infected होते हैं. पर अक्सर इस बात से अनजान होते हैं क्योंकि ज़्यादातर लोगों में h pylori के कोई लक्षण नहीं होते हैं. और इस बात पे रिसर्च भी चल रही है की सभी लोगों को लक्षण क्यों नहीं आते है और अब तक की शोध से यह पता चला है कि कुछ लोग इस बैक्टीरिया के हानिकारक प्रभावों से resistant होते हैं. और जब इस इन्फेक्शन के लक्षण मरीज़ में आने लगते हैं तब वे डॉक्टर के पास जाते है. तो सबसे पहले हम बात करते हैं की इस इन्फेक्शन के क्या क्या लक्षण हो सकते हैं. ये लक्षण एसिडिटि और अलसर से संबंधित होते हैं.
इनमें सबसे पहले आता है पेट में जलन, पेट में दर्द, ख़ाली पेट इस दर्द का बढ़ना, जी घबराना, भूख ना लगना, बार बार डकार आना, पेट फूलना या bloating होना, अचानक से वजन कम होने लग जाना. कई बार ये लक्षण गंभीर हो सकते हैं जिसके लिये आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और इन गंभीर लक्षणों में आता हैं मोशन में खून आ जाना , आपको काले रंग का मोशन हो सकता है, आपको उल्टी में खून आ सकता है या कॉफ़ी रंग की उल्टी आ सकती है या आपको पेट में बहुत तेज दर्द हो सकता है. अब बात करते हैं की ये इन्फेक्शन कैसे होता है. ये इन्फेक्शन इंफ़ेक्टेड खाने और पानी से हो सकता है या फिर इंफ़ेक्टेड लार, vomit या मल के संपर्क में आने से भी यह इन्फेक्शन आपको हो सकता है. अगर आप इन इंफ़ेक्टेड चीज़ों के संपर्क में आये और आपने बिना हाथ धोये ख़ाना खाया तो ये बैक्टीरिया आपके पेट में पहुँच जाएगा.
कुछ लोगों को h pylori इन्फेक्शन का ख़तरा दूसरे लोगों से ज्यादा होता है. ये लोग हैं वे लोग जो क्लीन हाइजीन नहीं maintain करते हैं, बिना हाथ धोए ख़ाना या पानी ले लेते हैं या वे लोग जिन्हें पीने के लिए साफ़ पानी नहीं मिलता है. इस इन्फेक्शन का ख़तरा उन लोगों में भी ज़्यादा है जो किसी ऐसे इंसान के साथ रह रहे है जिसे h pylori का इन्फेक्शन है. अगर इस इन्फेक्शन का इलाज समय पर ना हो तो मरीज़ को काफ़ी जटिलताएँ भी हो सकती हैं जैसे की peptic अलसर जहां पेट में या पेट से निकलने वाली छोटी आँत के पहले भाग में अलसर हो जाते हैं, पेट में सूजन या gastritis भी हो सकता है, पेट का कैंसर भी हो सकता है. दोस्तों अब बात करते हैं की कैसे इस इन्फेक्शन का diagnosis जल्द से जल्द हो सकता है. इनमें आते हैं stool antigen test जिस में मरीज़ के मल की जाँच की जाती है जिस में एक ऐसे प्रोटीन की जाँच होती है जो सिर्फ़ h pylori बैक्टीरिया में मिलता है,
अगला टेस्ट है stool pcr test जिस में मरीज़ के मल में इस बैक्टीरिया के dna को ढूँढा जाता है. और इस टेस्ट से यह भी पता चलता है की एंटीबॉयोटिक्स इस बैक्टीरिया पे काम करेगी या नहीं. यह टेस्ट antigen टेस्ट से ज़्यादा महँगा होता है और यह हर जगह नहीं होता है. अगला टेस्ट है breath टेस्ट जहां आपकी साँस की जाँच की जाती है जिस में Co2 को अस्सेस करा जाती है. अगला टेस्ट है एंडोस्कोपी एंड बायोप्सी जहां दूरबीन से आपके मुँह के रास्ते पेट तक पहुँचा जाता है और बाहर टी वी पे आपके पेट के अंदर की तस्वीर देखी जाती है. अगर h pylori का infection है तो पेट में सूजन हो सकती है और अलसर भी दिखायी दे सकते हैं. इस दूरबीन की जाँच के दौरान पेट की biopsy ली जाती है और एक rapid urease टेस्ट नाम का टेस्ट भी किया जाता है जो मात्र दो मिनट में हो जाता है. अगर इन जाँचो में आपके h pylori का इन्फेक्शन आया हैं तो इसके इलाज के लिए एंटीबॉयोटिक्स दी जाती है. दो से तीन तरह की एंटीबॉयोटिक्स, सात दिन से दो हफ़्तों तक दी जाती है. और इस इलाज से 80-90 प्रतिशत cases में पूर्ण उपचार देखा गया है. एंटीबॉयोटिक्स की वजह से मामूली side effects जैसे की डायरिया, जी घबराना इत्यादि हो सकता है पर फिर भी एंटीबॉयोटिक्स के कोर्स को पूरा लेना बहुत ज़रूरी है नहीं तो antibiotic resistance हो सकती है. antibiotic कोर्स पूरा होने के बाद h pylori की जाँच फिर से की जाती है. साथ ही साथ इसके लक्षणों के इलाज के लिए पेट के एसिड को कम करने की दवाएँ जैसे की ppi या proton pump inhibitor और H2 blockers भी दिये जाते हैं,
इसके अलावा अलसर के दर्द और जलन से राहत पाने के लिये कुछ ऐसी दवाएँ भी दी जाती है जो अलसर और पेट में एक coating बनाती है जैसे की bismuth subsalicylate. इलाज के दौरान चार हफ़्तों बाद दुबारा h pylori की जाँच की जाती है और अगर यह जाँच पॉजिटिव आती है तो इससे यह पता चलता है की जो एंटीबॉयोटिक्स दी जा रही हैं वह इस बैक्टीरिया पे असर नहीं कर पा रही है और इन्हें बदलने की ज़रूरत है या और दूसरी एंटीबॉयोटिक्स ऐड करने की ज़रूरत है. दोस्तों, h pylori के इन्फेक्शन से बचाव संभव है अगर हम अच्छी हाइजीन और सैनिटेशन की आदतें अपनाए. शौच के बाद और खाने से पहले या किसी भी खाने की चीज़ को हैंडल करने से पहले हाथ साबुन और पानी से अच्छी तरह धोये. अगर साबुन उपलब्ध नहीं है तो sanitiser का इस्तेमाल करे. अगर आपकी acidity लंबे समय से है और ठीक नहीं हो रही है तो h pylori की जाँच अवश्य कराये.